हार्ट मरीजों के लिए एडवांस तकनीक से इलाज बना वरदान, मैक्स अस्पताल साकेत ने किया लोगों को जागरुक

varanasi25 जून, 2022, वाराणसी : कार्डियक साइंस के क्षेत्र में आईं एडवांस तकनीक मरीजों के लिए वरदान साबित हुई हैं. यहां तक कि आखिरी स्टेज के मरीजों या हार्ट फेल की स्थिति में भी ये एडवांस प्रक्रिया बेहद कारगर साबित हुई हैं. दिल से जुड़ी बीमारियों खासकर एक्यूट हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट पूरी दुनिया में मौत का नंबर वन कारण बन गए हैं.

varanasi25 जून, 2022, वाराणसी : कार्डियक साइंस के क्षेत्र में आईं एडवांस तकनीक मरीजों के लिए वरदान साबित हुई हैं. यहां तक कि आखिरी स्टेज के मरीजों या हार्ट फेल की स्थिति में भी ये एडवांस प्रक्रिया बेहद कारगर साबित हुई हैं. दिल से जुड़ी बीमारियों खासकर एक्यूट हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट पूरी दुनिया में मौत का नंबर वन कारण बन गए हैं. भारत भी इससे अछूता नहीं है. इसी खतरे को ध्यान में रखते हुए नई दिल्ली के साकेत स्थित मैक्स सुपर स्पेशयलिटी अस्पताल ने यूपी के वाराणसी में एक अवेयरनेस कार्यक्रम आयोजित किया. इस कार्यक्रम के जरिए लोगों एडवांस हार्ट केयर और वक्त पर इलाज के अहम रोल को समझाया गया.

मैक्स अस्पताल में कार्डियक साइंसेज़ डिपार्टमेंट के प्रिंसिपल डायरेक्टर और पूरे ग्रुप के कैथ लैब्स चीफ डॉक्टर विवेका कुमार ने कार्यक्रम को संबोधित किया. उन्होंने बताया कि लोगों के बीच एडवांस तरीके से किए जा रहे इलाज के बारे में बताने की जरूरत है ताकि उनके जीवन को बचाया जा सके. उन्होंने इंटरवेंशन कार्डियोलॉजी में वाल्वुलर हृदय रोगों के उपचार के तौर-तरीकों में हुई प्रगति के बारे में भी बताया.

कोरोना महामारी ने दिल के खतरे को और बढ़ा दिया है. कोरोना से रिकवर मरीजों में कार्डियक से जुड़ी बीमारियों का रिस्क बढ़ गया है. कई यंग फिल्म स्टार्स हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट के कारण इस दुनिया से चले गए हैं. ये भी दर्शाता है कि इस जानलेवा रोग के बारे में अवेयरनेस और टाइम पर ट्रीटमेंट की कितनी जरूरत है. 

डॉक्टर विवेका कुमार ने इस मौके पर आगे बताया, ''नॉन सर्जिकल प्रक्रिया (पीसीआई) के क्षेत्र में स्ट्रक्चरल हार्ट इंटरवेंशन नई बात नहीं है. बैलून माइट्रल वाल्वोप्लास्टी, बैलून अट्रायल वाल्वोप्लास्टी, अट्रायल सेप्टल या वेंट्रीक्यूलर सेप्टल डिफेक्ट जैसे इलाज के तरीके आम हैं. लेकिन एक्यूट हार्ट अटैक जैसे मामलों में पीटीसीए के लिए एडवांस टेक्नॉलजी उपलब्ध है. टीऐवीआई प्रक्रिया के तहत बिना ओपन सर्जरी के वाल्व बदल दिए जाते हैं, साथ ही माइट्रा वाल्व में भी इसी प्रक्रिया के तहत क्लिप लगाई जाती हैं. कम से कम चीर-काट कर सर्जरी के इस एडवांस तरीके से दिल से जुड़ी बीमारियों के इलाज में क्रांति आई है. गंभीर हार्ट फेल्योर केस में ईसीएमओ, एलवीऐडी  और हार्ट लंग ट्रांसप्लांट के जरिए लास्ट स्टेज के मरीजों को भी नया जीवन मिलना संभव हो पाया है.''

भारत में कुल रोगों के कम से कम 50 फीसदी केस हार्ट डिसीज से जुड़े होते हैं. उम्र से पहले मौत के मामले में हार्ट डिसीज अहम कारण है. इससे भी हैरानी की बात ये है कि 25-40 साल की उम्र के युवाओं के बीच हार्ड डिसीज बढ़ी है. एक अनुमान के मुताबिक, हर चार में से एक मौत का कारण हार्ट से जुड़ी दिक्कतों के माइल्ड लक्षणों पर ध्यान न देना रहा है, 25-35 साल के पुरुषों और महिलाओं में मौत का एक बड़ा कारण भी हार्ट डिसीज ही रही है.

दिल से शरीर के बाकी हिस्सों में जो ब्लड सर्कुलेट होता है वो एओर्टिक वाल्व के जरिए जाता है. इस पर कुछ भी असर पड़ता है तो वाल्व के सिकुड़ जाने का खतरा रहता है. ये संभव है कि लंबे समय तक इस समस्या के लक्षण मरीज को पता न चलें, लेकिन धीरे-धीरे जब ये बढ़ता जाता है तो इलाज में भी दिक्कत आ जाती है. करीब 34 फीसदी मरीजों की अचानक मौत होने का अंदेशा रहता है. एओर्टिक वाल्व बदलने के लिए एसऐवीआर प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे 3-8 फीसदी केस में मौत का खतरा रहता है. जबकि अगर कोई हाई रिस्क पेशंट हो तो ये खतरा और भी बढ़ जाता है. आमतौर पर एओर्टिक स्टेनोसिस के मरीज उम्रदराज लोग होते हैं, जिन्हें किडनी, लिवर जैसे रोग भी होते हैं या फिर उनकी पहले से ही हार्ट सर्जरी भी हो चुकी होती है. ऐसी स्थिति में सर्जरी के जरिए एओर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट (ऐ वी आर) और भी घातक हो जाता है. इन्हीं सब कारणों के चलते करीब 30% बजुर्ग पेशंट रिप्लेंसमेंट सर्जरी नहीं कराते हैं, क्योंकि इसके गलत नतीजों का भी डर रहता है. इन मुश्किल हालातों में टीऐवीआर यानी ट्रांसकैथिटर एओर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट प्रक्रिया ऐसे मरीजों के लिए वरदान बनकर आई है.

डॉक्टर विवेका कुमार ने इसके बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया, '' टीऐवीआर सर्जरी प्रक्रिया में पेरिफेरल आर्टेरियल तरीके से वाल्व डाले जाते हैं. आमतौर पर ये फेमोरल अर्टरी के जरिए किया जाता है लेकिन असाधारण केसों में सबक्लैवियन और कैरोटिड आर्टरी के जरिए किया जाता है. कई बार सीधे एओर्टिक से भी सर्जरी कम्प्लीट कर ली जाती है. शुरुआती दौर में ये तरीका उन मरीजों पर अपनाया गया जो एसऐवीआर के लिए फिट नहीं थे. ट्रायल के रिजल्ट अच्छे रहे और आज टीऐवीआर ऐसे मरीजों की पसंद बन गया है. इंटरनेशनल गाइडलाइंस भी टीएवीआर को सपोर्ट करती हैं. मुख्यत: वाल्व दो प्रकार के होते हैं और टीऐवीआर की प्रक्रिया में कैथिटर (पतली ट्यूब) को पास किया जाता है और एओर्टिक वाल्व लगाई जाती है. साथ ही ये सुनिश्चित किया जाता है कि किसी तरह की लीकेज न हो.''

वाल्व संबंधी दिल की बीमारियां काफी घातक होती हैं, जिनमें वाल्व बदलने के लिए अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है. लेकिन हालिया एडवांस तौर-तरीकों से ये आसान हो गया है. लीकिंग हार्ट का ट्रीटमेंट बिना सर्जरी के माइट्रा क्लिप लगाकर कर लिया जाता है, इसमें भी कैथिटर की सहायता ली जाती है. अगर इस तरह के मरीजों का इलाज न किया जाए तो इसके दिल का साइज़ बड़ा होने, सांस रुकने और हार्ट फेल्योर जैसे खतरे रहते हैं. अब तक भारत में वाल्व बदलने या उन्हें ठीक करने के लिए सिर्फ ओपन हार्ट सर्जरी को एकमात्र संभव इलाज माना जाता है, लेकिन ये कई बार रिस्की होता है और फायदेमंद भी साबित नहीं हो पाता.

डॉक्टर विवेका कुमार ने बताया, ''माइट्राक्लिप प्रक्रिया के तहत वाल्व रिपेयरिंग के भी अच्छे नतीजे आ रहे हैं. इस प्रक्रिया में माइट्रल वाल्व लीकेज को 15 मिमी की क्लिप लगाकर ठीक किया जाता है. वाल्व लीकेज की ये समस्या वाल्व असमान्यता या चैंबर में फैलाव के कारण होती है. हार्ट मरीजों में माइट्रा क्लिप लगाने से मौत के रेट में कमी आई है. यहां तक कि इस माइट्रा सिस्टम का इस्तेमाल ट्राईक्यूस्पिड वाल्व रिपेयर के लिए भी किया जा रहा है, जिसके मिक्स्ड रिजल्ट आ रहे हैं. उम्मीद है कि भविष्य में ये और ज्यादा कारगर साबित होगा. जिस तरह अलग-अलग रोगों से पीड़ित हार्ट डिसीज वाले पेशंट बढ़ रहे हैं, निस्संदेह इस तरह के नए उपचारों की बहुत आवश्यकता है.''
[4:11 PM, 6/25/2022] Prem Kashivarta Cantt: 

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