१२जुन से गोवा में होगा अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन
liveupweb प्रस्तावना : विगत कुछ वर्षाें में संपूर्ण विश्व में भारत का गौरव बढा है । सर्वसामान्य देशप्रेमी व्यक्ति से लेकर उच्चपदस्थ व्यक्तियों तक अनेक लोग भारत को महासत्ता बनाने का सपना संजोए हुए हैं; परंतु इस ‘धर्मनिरपेक्ष’ भारत में इस स्वप्न का वास्तविकता में उतरना असंभव है ।
12 से 18 जून की अवधि में गोवा में होनेवाले दशम ‘अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन’ के उपलक्ष्य में ...
हिन्दू राष्ट्र का उद्घोष !
liveupweb प्रस्तावना : विगत कुछ वर्षाें में संपूर्ण विश्व में भारत का गौरव बढा है । सर्वसामान्य देशप्रेमी व्यक्ति से लेकर उच्चपदस्थ व्यक्तियों तक अनेक लोग भारत को महासत्ता बनाने का सपना संजोए हुए हैं; परंतु इस ‘धर्मनिरपेक्ष’ भारत में इस स्वप्न का वास्तविकता में उतरना असंभव है । भारत तभी महासत्ता अथवा विश्वगुरु बन सकेगा, जब भारत एक हिन्दू राष्ट्र बनेगा । इस्लामी अथवा ईसाई देशों की भांति हिन्दू राष्ट्र कोई संकीर्ण अवधारणा (संकल्पना) नहीं है, अपितु वह विश्वकल्याण का विचार करनेवाली, प्रत्येक नागरिक की लौकिक एवं पारलौकिक उन्नति का विचार करनेवाली एक सत्त्वप्रधान व्यवस्था है ।
1. हिन्दू धर्म की एक व्यापक अवधारणा : मेरुतंत्र धर्मग्रंथ में ‘हीनं दूषयति इति हिन्दुः’, हिन्दू शब्द की यह परिभाषा दी गई है । इसका अर्थ यह है कि जो व्यक्ति स्वयं में विद्यमान हीन अथवा कनिष्ठ रज-तम गुणों का नाश करता है वह हिन्दू है ! इस प्रकार का सात्त्विक आचरण करनेवाला व्यक्ति केवल स्वयं तक सीमित संकीर्ण विचार नहीं करता, अपितु विश्वकल्याण का विचार करता है । इतिहास में इसके अनेक उदाहरण हैं । ऋग्वेद में ‘कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम् ।’ अर्थात ‘समस्त विश्व को आर्य अर्थात सुसंस्कृत बनाएंगे’, ऐसा कहा गया है । हमारे उपनिषदों में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की अवधारणा रखी गई है । इसका अर्थ ‘यह मेरा, यह मेरा नहीं’! जिनकी बुद्धि क्षुद्र होती है, उनके ऐसे विचार होते हैं । उदार चरित्रवाले लोगों का तो संपूर्ण पृथ्वी ही स्वयं के परिवार की भांति लगती है ।‘ संत ज्ञानेश्वर ने ज्ञानेश्वरी ग्रंथ में ‘यह विश्व ही मेरा घर है’, ऐसा बताया, तो ‘पसायदान’ नाम की प्रार्थना में उन्होंने विश्वकल्याण के लिए दान मांगा । ‘हिन्दू राष्ट्र’ की संकल्पना भी इसी आधार पर होने से यदि इसीको समझ लिया जाए, तो हिन्दू राष्ट्र के विषय में अकारण की जानेवाली आपत्तियों का अपनेआप ही खण्डन होगा ।
2. हिन्दू राष्ट्र की आवश्यकता : वास्तव में देखा जाए, तो पहले भारत एक स्वयंभू हिन्दू राष्ट्र ही था । वर्ष १९४७ में धर्म के आधार पर देश का विभाजन होने के उपरांत पाकिस्तान एक भिन्न देश बन गया ।
वास्तव में उसी समय शेष हिन्दुस्थान अर्थात भारत ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित होना चाहिए था; परंतु वैसा नहीं हुआ । उसके विपरीत वर्ष १९७६ में आपातकाल के समय सभी विरोधियों को कारागार में बंद कर तत्कालीन कांग्रेस की सरकार ने संविधान में ‘सेक्युलर’ शब्द घुसा दिया ।
अभीतक इस ‘सेक्युलर’ शब्द की किसी प्रकार की आधिकारिक परिभाषा नहीं की गई है; परंतु इसी ‘सेक्युलर’वाद के नाम पर अबतक अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण और हिन्दुओं का दमन ही हो रहा है ।
यदि संविधान में संशोधन कर भारत को अन्यायकारी पद्धति से ‘सेक्युलर’ देश घोषित किया जा सकता है, तो पुनः इसी प्रकार से संविधान में संशोधन कर भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ क्यों नहीं घोषित किया जा सकता ?
3. हिन्दुओं पर बढते जा रहे अत्याचार : आज केंद्र में भले ही सत्तापरिवर्तन हुआ हो; परंतु हिन्दुओं पर हो रहे आघात रुके नहीं हैं ।
अनेक गैरमुसलमान युवतियां ‘लव जिहाद’ की शिकार हो रही हैं । दिनदहाडे कमलेश तिवारी, चंदन गुप्ता, हर्ष जैसे हिन्दुत्वनिष्ठों की हत्याएं हो रही हैं । तमिलनाडू की ‘लावण्या’ जैसी हिन्दू युवतियों और महिलाओं को ईसाई धर्मांतरण के दबाव के कारण अपने प्राण गंवाने पड रहे हैं ।
भारत और हिन्दुत्व को बदनाम करने के लिए ‘हिजाब’ एवं ‘किसान आंदोलन’ जैसे ‘टूलकिट’ का उपयोग किया जा रहा
है । ‘थूक जिहाद’, ‘नार्काेटिक जिहाद’ जैसे जिहाद के नए-नए मार्ग तैयार हो रहे हैं ।
‘कॉमेडी’ के नाम पर हिन्दू देवी-देवताओं की घिनौनी आलोचना की जा रही है । आज ३२ वर्ष बीत जाने पर भी जिहादी आतंकवाद के कारण कश्मीर से विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं का कश्मीर में पुनर्वास नहीं हो सकता है ।
अनुच्छेद ३७० निरस्त करने के कारण कश्मीरी हिन्दुओं का कश्मीर में वापस आने का मार्ग कुछ सरल हुआ हो; परंतु वह अभी भी सुरक्षित नहीं है, यही वास्तविकता है । हिन्दूबहुल भारत में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार रोकने के लिए ‘हिन्दू राष्ट्र’ ही एकमात्र विकल्प है ।
4. राष्ट्र पर मंडरा रहे संकट : आज भारत के ९ राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए हैं । पंजाब से अलग खलिस्तान की, तो तमिलनाडू से भी द्रविडीस्तान की मांग हो
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