वाराणसी कमिश्नरेट बनते ही भू-माफियाओं की तरकीबे फेल

वाराणसी। कमिश्नरेट वाराणसी पुलिस की मुस्तैदी से एक तरफ भू माफियाओं की कमर टूटने लगी है तो वही दूसरी तरफ भूमाफिया अपना पैर जमाने की नई नई तरकीबें तलाशने में लगे हुए हैं। ऐसा ही एक मामला लोहता थाना क्षेत्र में देखने को मिला है जहां भू माफियाओं ने कथित पीड़िता के नाम से पुलिस आयुक्त को शिकायती प्रार्थना पत्र रजिस्टर डॉक से भेज दिया।

वाराणसी कमिश्नरेट बनते ही भू-माफियाओं की तरकीबे फेल

वाराणसी कमिश्नरेट बनते ही भू-माफियाओं की तरकीबे फेल 
वाराणसी। कमिश्नरेट वाराणसी पुलिस की मुस्तैदी से एक तरफ भू माफियाओं की कमर टूटने लगी है तो वही दूसरी तरफ भूमाफिया अपना पैर जमाने की नई नई तरकीबें तलाशने में लगे हुए हैं। ऐसा ही एक मामला लोहता थाना क्षेत्र में देखने को मिला है जहां भू माफियाओं ने कथित पीड़िता के नाम से पुलिस आयुक्त को शिकायती प्रार्थना पत्र रजिस्टर डॉक से भेज दिया। आलाधिकारियों के निर्देश पर शिकायत की जांच लोहता पुलिस ने शुरू किया तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। भू-माफिया ने शिकायत की पैरवी कर उपनिरीक्षक पर बिना शिकायत की जांच पड़ताल किए ही आलाधिकारी के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत करने का दबाव बनाया। परन्तु कर्मठ, मेहनती व ईमानदार उप निरीक्षक के सामने भूमाफिया की एक नहीं चली और उपनिरीक्षक ने कथित पीड़िता को अपने समक्ष उपस्थित करने हेतु फरमान सुना दिया फरमान सुनते ही भूमाफिया चंपत हो गया। जांच अधिकारी पीड़िता का पता ठिकाना ढूंढने में पसीना बहा रहे हैं किन्तु पीड़िता का कहीं पता नहीं चल रहा है। 


पूर्व में भू-माफिया उठाते रहे हैं पुलिस की लचर व्यवस्थाओं का फायदा
भूमाफिया किसी निर्दोष को कानून के शिकंजे में झूठा फंसाने के लिए झूठा शिकायती प्रार्थना पत्र रजिस्टर्ड डाक से आलाधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत कर देते थे और कुछ दिनों बाद न्यायालय की शरण में जाकर पुलिस की लचर व्यवस्था का फायदा उठाकर मनमाफिक रिपोर्ट न्यायालय को प्रस्तुत कराने में सफल हो जाते थे। न्यायालय से आपराधिक मुकदमा दर्ज करने का आदेश प्राप्त होते ही भू माफिया के बल्ले बल्ले होती थी और निर्दोष न्यायालय का चक्कर काटने के लिए मजबूर हो जाता था।
दूषित विवेचना कर पुलिस लगा देती थी आरोपपत्र
न्यायालय के निर्देश पर आपराधिक मुकदमा दर्ज होने के पश्चात जांचकर्ता पीड़िता का ठिकाना की जानकारी किए बिना ही मनमाने तौर पर पीड़िता का बयान दर्ज कर देते थे और न्यायालय के समक्ष आरोप पत्र प्रस्तुत कर भू माफियाओं को खुश कर देते थे। पूरी विवेचना दौरान विवेचक को पीड़िता का सही ठिकाना की जानकारी हासिल नहीं हो पाती थी।

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