BHU में सुखदेव सिंह स्मृति सम्मान समारोह और एकल व्याख्यान
कबीर विवेक परिवार द्वारा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र के सभागार में 'सुखदेव सिंह स्मृति सम्मान समारोह' का आयोजन किया गया, जिसमें पुरस्कृत किए गए इस बार जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में पूर्व में कार्यरत , मध्यकाल और भक्ति साहित्य के विशिष्ट अध्येता प्रोफ़ेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल और इसी अवसर पर उनका एक एकल व्याख्यान भी आयोजित किया गया था।
कार्यक्रम की शुरुवात विधिवत तरीके से महान मालवीय और प्रोफ़ेसर सुखदेव सिंह की तस्वीर के ऊपर पुष्प-अर्पित कर की गई।
काशी के हिन्दी विभाग में कार्यरत प्राध्यापक डॉक्टर विंध्याचल यादव को कार्यक्रम के संचालन की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी, जिसका उन्होंने बेहद मनोभाव के साथ पालन किया।
कुलगीत और कबीर भजन के छोटे से संगीतात्मक अंतराल के पश्चात प्रो. प्रज्ञा पारमिता के द्वारा स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया गया और कबीर विवेक परिवार की तरफ़ से प्रो. मनोज सिंह ने एक सुंदर वक्तव्य प्रस्तुत किये।
मंचासीन जनों में प्रोफ़ेसर अग्रवाल और डॉ.विंध्याचल यादव के साथ-साथ हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ अनूप भी थे जिन्हें उस व्याख्यान सत्र में अध्यक्षता की भूमिका सौंपी गई थी।
निर्णायक मंडली की तरफ़ से विभाग के प्राध्यापक प्रो.आशीष त्रिपाठी के द्वारा एक वक्तव्य पेश किया गया जिसमें प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल को एक जनोन्मुख बुद्धिजीवी बतलाया और विस्तारपूर्वक उनकी उपलब्धियों पर भी बात की।
प्रोफ़ेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल ने बेहद ही सुरुचिपूर्ण और विश्लेषणपरक भूमिका के साथ अपने वक्तव्य की शुरुवात की और उसका सुसंगत परिचयात्मक पाठ किया जिसमें उन्होंने पारंपरिक तरीके से भक्तिकालीन 'दादूपंथ' को केंद्र में रखते हुए निर्गुण पंथ के विषय में अपनी मौलिक धारणाएँ पेश की और ज्ञान के विऔपनिवेशिकरण की धारा से ख़ुद के पूर्ववर्ती कामों को भी जोड़ा।
उन्होंने भाषा-मित्र की हैसियत से संस्मरणात्मक शैली में ख़ुद को सुखदेव सिंह की स्मृतियों से जोड़ा और सहृदयता के साथ याद भी किया और इसी बहाने कबीर और भक्तिकाल संबंधी उनके कामों की भी एक गुणवत्तापूर्ण चर्चा की।
मध्य-कालीन व्यापारिक पूँजीवाद और आधुनिकता की धारणा को सभा में पुष्ट करने के बाद वे अपने विषय की और प्रस्थान करते हुए जनगोपाल के 'दादूजनलीला' के आधार पर, दादू को केंद्र में रखते हुए सभा के समक्ष उस दौर की सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक अभिव्यक्तियाँ पेश की और मध्य-कालीन लोक चिन्ता की तुलना नवजागरण युग के साथ की और स्वतःस्फूर्त मध्य-कालीन संघर्ष और नवजागरण युगीन संघर्ष की सघन तुलनाएँ भी पेश कीं।
इस एकल व्याख्यान के समापन के बाद भिन्न कक्षाओं के विद्यार्थियों के साथ प्रो.अग्रवाल ने बेहद जनवादी तरीके से वक्तव्य-सम्बंधित संवाद और प्रश्नोत्तर क़ायम किए।
प्रोफ़ेसर वशिष्ट अनूप ने अध्यक्षीय भाषण में इस विचारोत्तेजक व्याख्यान की ख़ूब प्रशंसा की और इस सभा को डॉ• भगवन्ती सिंह के धन्यवाद वक्तव्य के साथ भंग किया गया।
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