चैत्र नवरात्रि : दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी देवी के दर्शन को उमड़े श्रद्धालु, संतान की कामना होती है पूरी
वासंतिक नवरात्र के पहले दिन बुधवार को मां दुर्गा के प्रथम स्वरुप माता शैलपुत्री की पूजा हुई। आज नवरात्र के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी के पूजन का विधान है। माता का अतिप्राचीन मंदिर गंगा तट पर ब्रह्माघाट पर स्थित है। श्रद्धालु संकरी गलियों में मां के दर्शन को अर्द्धरात्रि के बाद से ही कतारबद्ध हो गए थे। मंगला आरती के बाद से माता के जयकारे से मंदिर परिसर गूंज रहा है। वहीं इस दिन माता ज्येष्ठा गौरी का दर्शन-पूजन भी होता है। इनके मस्तक पर मुकुट शोभायमान है। पीली और लाल चुनरी में माता का रूप मनभावन है। नवरात्र के दूसरे दिन यहां भी दर्शन को भक्तो की भारी भीड़ उमड़ रही है।
मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी के दर्शन से संतान की प्राप्ति होती है और साथ ही साथ मां धन-धन्य से परिपूर्ण करती हैं। इसके अलावा पढ़ाई में कमजोर विद्यार्थियों को माता ब्रह्मचारिणीं का नियमित दर्शन करना चाहिए। दर्शन करने पहुंची श्रद्धालु महिला ने कहा कि वो हमेशा दर्शन को आती हैं। माता से कोई मन्नत नहीं मांगनी बस नवरात्र में उनका दर्शन मिले यही सौभाग्य की बात है। वहीं लहरतारा से आयी एक अन्य श्रद्धालु ने बताया कि नवरात्र के दूसरे दिन कई वर्षों से यहां दर्शन को आती हैं और अपने परिवार की सुख और समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं।
मंदिर के महंत पंडित राजेश्वर सागरकर ने बताया कि अश्विन नवरात्र के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणीं के दर्शन का विधान है। काशी में यह दर्शन-पूजन अति प्राचीन काल से इस मंदिर में चला आ रहा है। माता सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। विशेषकर कहा गया है कि जो विद्यार्थी पढ़ाई में कमजोर हैं वो माता का नियमित दर्शन और श्लोक का पाठ करें तो उन्हें अवश्य लाभ मिलेगा और उनकी अच्छी नौकरी भी लग जाएगी। मां दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरुप माता ब्रह्मचारिणी का है। यहां 'ब्रह्म' शब्द का अर्थ तपस्या है यानी तप का आचरण करने वाली भगवती। इसीलिए इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया। देवी का यह रुप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं। माँ ब्रह्मचारिणी को ब्रहमा की बेटी कहा जाता है क्यों की ब्रहमा के तेज से ही उनकी उत्पत्ति हुई है !माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरुप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है ! इनके दाये हाथ में जप की माला और बाये हाथ में कमंडल है !माँ के इस स्वरुप की आराधन करने पर शक्ति ,त्याग ,सदाचार ,सयम , और वैराग में वृद्धि होती है ! माँ को लाल फुल का चडाहावा बहुत पसंद है ! माँ के तेज की लीला अपरम्पार है ... यह आकर जो भी मुरदे मागी जाती है वो जरुर पूरी होती है !
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