जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में डीबी कॉर्प को औरंगाबाद हाईकोर्ट से करारा झटका
तमाम मीडिया समूह अपने समाचार पत्रों व चैनल ईमानदारी और सच्चाई का परचम लहराते रहते हैं।
तमाम मीडिया समूह अपने समाचार पत्रों व चैनल ईमानदारी और सच्चाई का परचम लहराते रहते हैं। अपने पाठकों और दर्शकों को बताते हैं कि हम ही है सच्चाई बताने और दिखाने के अलमबरदार। लेकिन यह सिर्फ हाथी के दांत हैं। शासन और प्रशासन इससे अनजान भी नही है। दूसरों के फटे में हाथ लगाना और उसे कठघरे में खड़ा करके यह तत्काल महान बन जाते हैं। एंकर ऐसे-ऐसे जैसे मानो इनसे बड़ा सच्चाई का मसीहा दुनिया में कोई नही है। लेकिन यह भी सच है कि आज हजारों पत्रकार मजीठिया वेज बोर्ड के तहत अपना हक पाने के लिए मीडिया समूहों के खिलाफ देश के श्रम न्यायालयों की शरण में हैं। जिस मामले के निस्तारण के लिए छह माह का समय दिया गया था वह आठ साल से लटके हुए हैं। समय-समय पर अलग-अलग प्रदेशों से इससे जुड़ी खबरें आती रहती हैं। तमाम मुश्किलों के बावजूद पत्रकार अपनी लड़ाई जारी रखे हुए हैं। कोर्ट किसी नेता, मंत्री या किसी नामदार को लताड़ लगाए, आदेश, निर्देश दे तो खबर जरूर आपतक पहुंचती है लेेकिन किसी भी मीडिया समूह प्रबंधन को लताड़ लगाए तो खबर नही बनती। जानते हैं क्यों, क्योंकि उनके यह उनकी बिरादरी के लोगों के खिलाफ है। आज कितनी हास्यास्पद स्थिति है कि समाज का आईना बनने का दावा करनेवाला मीडिया समूह अपने आईने में झांकने का साहस नही जुटा पा रहे हैं। ऐसे में ऐसी खबरें महज कुछ सोशल मीडिया की खबर ही बन पाती है। क्या उच्च न्यायालय की यह कार्रवाई खबर नही है?
मुम्बई। देश के समाचार पत्र कर्मचारियों के वेतन और अधिकार से जुड़े जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में मुंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद खंडपीठ ने दैनिक भास्कर समूह (डीबी कॉर्प ) के समाचार पत्र दिव्य मराठी दैनिक प्रबंधन को एक बार फिर फटकार लगाई है, जिसने देश भर के पत्रकारों का ध्यान आकर्षित किया है। औरंगाबाद के सहायक श्रम आयुक्त को भी 2019 में श्रम न्यायालय द्वारा पारित पुरस्कार के कार्यान्वयन में देरी के लिए माननीय उच्च न्यायालय ने लताड़ लगाई है। उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार द्वारा लाए गए जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार, उप समाचार संपादक सुधीर भास्कर जगदाले के दावे पर दैनिक भास्कर समूह (डीबी कॉर्प ) दिव्य मराठी के खिलाफ वसूली प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति रवींद्र घुगे द्वारा यह लैंडमार्क जजमेंट पारित किया गया। बताते हैं कि सुधीर जगदाले के पक्ष में आदेश देते हुए औरंगाबाद श्रम न्यायालय द्वारा दैनिक भास्कर समूह (डीबी कॉर्प ) को 4 जनवरी 2019 जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार तीन महीने के भीतर बकाया भुगतान करने का आदेश दिया था। इस आदेश के खिलाफ दैनिक भास्कर ग्रुप (डीबी कॉर्प ) की दिव्य मराठी प्रबंधन ने श्रम न्यायालय में रिव्यू पिटीशन दाखिल की थी। जिसे 10 जून 2019 को श्रम न्यायालय ने खारिज कर दिया। उसके बाद डीबी कॉर्प ने इस अवार्ड का विरोध किया और उसे मुंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद खंडपीठ में चुनौती दी थी तथा उस पर स्टे की मांग की। मुंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद खंडपीठ में इस मामले की पहली तारीख 23 सितंबर 2019 थी। डीबी कॉर्प लिमिटेड के प्रबंधन ने स्टे की मांग की। औरंगाबाद हाईकोर्ट ने दिव्य मराठी (डीबी कॉर्प ) को निर्देश दिया कि वह 50 फीसदी बकाया कोर्ट में जमा करे उसके बाद ही मामले की सुनवाई होगी । करीब ढाई साल से दैनिक भास्कर समूह ने इस मामले में माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी 50 प्रतिशत राशि अदालत में जमा नहीं की । इसलिए उप समाचार संपादक सुधीर जगदाले फिर मुंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद खंडपीठ में गुहार लगाई। कहाकि श्रम न्यायालय द्वारा पारित अवार्ड के निष्पादन और वसूली प्रमाण पत्र जारी करने से तकनीकी आधार पर परहेज किया जा रहा है। इसलिए सहायक श्रम आयुक्त को वसूली प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश दिया जाए। इस मामले में माननीय उच्च न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद दैनिक भाष्कर (डीबी कॉर्प ) प्रबंधन के खिलाफ रिकवरी सर्टिफिकेट जारी करने का निर्देश 23 मार्च 222 को दिया । सुधीर जगदाले की ओर से माननीय उच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता यतिन थोले ने अपना पक्ष रखा जबकि श्रम न्यायालय में मामले में सुधीर का पक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता पी.एस. एम. शिंदे और अधिवक्ता प्रशांत जाधव ने रखा। माननीय उच्च न्यायालय के 23 मार्च 2022 को जारी आदेशानुसार सहायक श्रम आयुक्त को आगे की कार्रवाई करनी होगी। श्रम पत्रकार अधिनियम की धारा 17 (3) के तहत दैनिक भास्कर समूह (डीबी कॉर्प लिमिटेड) के खिलाफ…
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