काशी में आज भी पूजी जा रही है 255 साल पुरानी दुर्गा माता जाने कहा वो पूजा पंडाल

वाराणसी :- मदनपुरा में एक ऐसा दुर्गा प्रतिमा है जो 255 वर्ष पुराना है। जिसकी पूजा आज भी बड़े ही विधि विधान के साथ किया जाता है। इस स्थान पर 1767 में या इससे पूर्व भी प्रतिमा स्थापित किया जाता था परंतु इन प्रतिमाओं का विसर्जन हो जाता था। पुराना दुर्गा बाड़ी हर वर्ष की भांति सन् 1767 ई० में भी दुर्गा पूजा के पश्चात विजया दशमी के दिन जब मूर्ति उठाई जाने लगी तो देवी अपने स्थान से हिली नहीं

वाराणसी :-  मदनपुरा में एक ऐसा दुर्गा प्रतिमा है जो 255 वर्ष पुराना है। जिसकी पूजा आज भी बड़े ही विधि विधान के साथ किया जाता है। इस स्थान पर 1767 में या  इससे पूर्व भी प्रतिमा स्थापित किया जाता था परंतु इन प्रतिमाओं का विसर्जन हो जाता था। पुराना दुर्गा बाड़ी हर वर्ष की भांति सन् 1767 ई० में भी दुर्गा पूजा के पश्चात विजया दशमी के दिन जब मूर्ति उठाई जाने लगी तो देवी अपने स्थान से हिली नहीं।

इस समस्या का समाधान माँ ने स्वयं उसी रात मुखर्जी परिवार के मुखिया को दिए। माता दुर्गा ने स्वप्न में आकर मुखर्जी परिवार के मुखिया से कहा कि मेरा मूर्ति जहां पर है वहीं पर रहने दीजिए "मैं इसी स्थान में रहकर काशीवास करूंगी, मुझे यहाँ से हटाने का प्रयास मत करों

यथा- शक्ति तथा भक्ति के आधार पर गुड़- चना में ही संतुष्टर हने का आदेश' दिया तभी से श्री श्री दुर्गा माँ यही पर विराजमान है। यह मूर्ति सामन्य पुआल, मिट्टी, बाँस तथा सुतरी द्वारा निर्मित है। माँ दुर्गा के दाहिनी ओर विष्णु (नारायण) भगवान कि काले पत्थर की मूर्ति है।

जो कि 11 वीं सदी (1000 वर्ष) की मूर्ति है। इस दुर्गा पूजा का प्रारम्भ पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के अर्न्तगत जोनाई रोड निवासी मुखर्जी" परिवार द्वारा हुई तब से आज तक चली आ रही है।

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