सुख, शांति और अध्यात्म का केंद्र गड़ौली धाम

वाराणसी 05 नवंबर। कछवां स्थित गड़ौली धाम सुख, शांति और आध्यात्म का केंद्र बन चुका है। इस धाम में पहुंचते ही ऐसा लगता है कि जैसे हम किसी अलौलिक जहां में आ गए हैं। न किसी बात की चिंता और न ही फिक्र। दीन-दुनिया से मतलब नहीं। दिल से लेकर दिमाग तक सिर्फ और सिर्फ प्रभु मिलन की ही आस। यहां आते ही मोह-माया के बंधन से दूर लोग प्रभु की भक्ति में लीन हो जाते हैं। सचमुच यह धाम अब प्रभु का धाम बन चुका है। देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन अंतरराष्ट्रीय दीपोत्सव एवं तुलसी विवाह समारोह का भव्य आयोजन कछवां स्थित गढ़ौली धाम में किया गया। ओ.एस.बालकुन्दन फाउंडेशन  के संस्थापक एवं प्रदेश भाजपा के सहप्रभारी सुनील ओझा के नेतृत्व में इस भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया

सुख, शांति और अध्यात्म का केंद्र गड़ौली धाम

सुख, शांति और अध्यात्म का केंद्र गड़ौली धाम
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चिंता न फिक्र, दीन-दुनिया से दूर प्रभु की भक्ति में लीन भक्तगण
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झिलमिलाते दियों के बीच मंत्रोच्चार से गुंजायमान हुआ वातावरण


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वाराणसी 05 नवंबर। कछवां स्थित गड़ौली धाम सुख, शांति और आध्यात्म का केंद्र बन चुका है। इस धाम में पहुंचते ही ऐसा लगता है कि जैसे हम किसी अलौलिक जहां में आ गए हैं। न किसी बात की चिंता और न ही फिक्र। दीन-दुनिया से मतलब नहीं। दिल से लेकर दिमाग तक सिर्फ और सिर्फ प्रभु मिलन की ही आस। यहां आते ही मोह-माया के बंधन से दूर लोग प्रभु की भक्ति में लीन हो जाते हैं। सचमुच यह धाम अब प्रभु का धाम बन चुका है। देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन अंतरराष्ट्रीय दीपोत्सव एवं तुलसी विवाह समारोह का भव्य आयोजन कछवां स्थित गढ़ौली धाम में किया गया। ओ.एस.बालकुन्दन फाउंडेशन  के संस्थापक एवं प्रदेश भाजपा के सहप्रभारी सुनील ओझा के नेतृत्व में इस भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

गौ, गंगा, गौरीशंकर का पावन संगम तट जब एक साथ पांच लाख दियों की रोशनी से नहाकर जगमगाया तो श्रद्धालु भावविभोर हो गए। उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों अंबर के तारे इस धरती पर उतर आए हों और जलधारा से अठखेलियां कर रहे हों। श्रद्धालुओं ने इस अविस्मरणीय पल को अपने कैमरे में कैद किया और सेल्फी के माध्यम से इन यादगार पलों को संजोया। झिलमिलाते दियों के बीच मंत्रोच्चार और हरि ओम की गूंज ने वहां आए सभी श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

विधि-विधानपूर्वक सम्पन्न हुआ तुलसी विवाह

प्रबोधिनी एकादशी पर माता तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह रीति-रिवाज के साथ सम्पन्न हुआ। हनुमान मंदिर से बारात निकली तो श्रद्धालुओं का समूह बाराती बने। बैंड-बाजे की धुन पर झूमते बाराती और गूंजते मंगलगीत। बारातियों का समूह गाजे-बाजे के साथ नाचते झूमते हुए वैवाहिक स्थल पर पहुंचा और विधि-विधानपूर्वक वैवाहिक कार्यक्रम में सम्मिलित होकर आध्यात्मिक सुख को प्राप्त किया।

श्री ओझा ने बताया कि "हिंदू सनातन परम्परा के अनुसार प्रबोधिनी एकादशी यानी देव उठनी एकादशी को भगवान विष्णु चार माह की योग निद्रा से जागते हैं और भगवान जिस दिन जागते हैं, उस दिन से सभी शुभ (मांगलिक) कार्य शुरू होते हैं।" कहा कि "इसी दिन तुलसी और शालीग्राम का विवाह किया जाता है और इसके पश्चात ही मानव विवाह (मांगलिक कार्य) की शुरूआत होती है।" 

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