खुद ब्रेकिंग खबर बन गए ब्रेकिंग चलानेवाले पत्रकार

वाराणसी। मीडिया मतलब समाज का आईना। इसमें कोई अगर, मगर, किंतु, परंतु की गुंजाइश नही है। सीधी बात-पत्रकार यदि हैं तो पत्रकारिता आपका धर्म और वही पहचान है। ऐसे में आप अपनी पहचान के साथ मजाक कैसे कर सकते हैं?

खुद ब्रेकिंग खबर बन गए ब्रेकिंग चलानेवाले पत्रकार

खुद ब्रेकिंग खबर बन गए ब्रेकिंग चलानेवाले पत्रकार 


वाराणसी। मीडिया मतलब समाज का आईना। इसमें कोई अगर, मगर, किंतु, परंतु की गुंजाइश नही है। सीधी बात-पत्रकार यदि हैं तो पत्रकारिता आपका धर्म और वही पहचान है। ऐसे में आप अपनी पहचान के साथ मजाक कैसे कर सकते हैं? हम अपनी लक्ष्मण रेखा को लांघने का प्रयास क्यों करते हैं? कारण साफ है कि मीडिया जगत में राजनैतिक प्रभाव लगातार बढ़ रहे हैं। राजनैतिक प्रभाव और चंद पैसों की खातिर खुद को नीलाम करने की प्रवृति पर अगर समय रहते रोक नही लगाई जाती तो यही मीडिया समाज के लिए बड़ा खतरा बन सकती है। पत्रकारिता ही समाज को आइना दिखाने का काम करती है

और उसी आइने पर गंदगी की परत जमती जा रही है जो सड़ांध की शक्ल ले चुकी है। हालत यह है कि देश और समाज का आइना बनने का दावा करने वाले खुद आइने के सामने आने से डर रहे हैं। दूसरों से सवाल पूछनेवाला आज खुद सवालों के घेरे में है।  देश के पत्रकारिता के तथाकथित कर्णधार और पत्रकारिता के नाम पर अपनी पहचान बनाने वाले चुपचाप तमाशा देख रहे हैं। ’अपना काम बनता, भांड़ में जाए जनता’ वाली कहावत पत्रकार ही चरितार्थ करते दिखाई दे रहे हैं। देशभर में पत्रकारों की हितैषी संगठनों की भरमार है। पत्रकारों और पत्रकारिता पर लगातार संकट आ रहे हैं और यह संस्थाएं की स्थिति बड़े ही शर्मनाक दौर में पहुंच चुकी है।

चंद राजेनताओं और उनकी पार्टियों की दासी बनकर अपना घर भरना, ऐशो आराम की जिंदगी जीना ही कई पत्रकार संगठनों और उनके पदाधिकारियों का मकसद ही बन गया है। इस देश में सैकड़ों जेबी संगठन चलाए जा रहे हैं। पैकेज के नाम पर धन लेना, टीआरपी, सोशल मीडिया पर लाइक, कमेंट और सब्सक्राइबर बढ़ाने की होड़ ने ब्रेकिंग खबर बनाने वालों को आज खुद दुनिया का सबसे बड़ा ब्रेकिंग खबर बना दिया है।

बलिया में पत्रकारों की गिरफ्तारी और मध्यप्रदेश में चड्ढी पर पत्रकारिता ताजा उदाहरण है। आश्चर्य की बात तो यह है कि यह पत्रकार जिन मीडिया हाउसों के लिए पत्रकारिता का चीरहरण कर रहे हैं उन्हें उनका हाउस उन्हीें से कमाए गए धन में से जूठन के बाराबर भी नही देता। देश में पत्रकारों के लिए कालेलकर, बछावत और मजिठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियां और उसकी जमीनी हकीकत से यह स्पष्ट है। लोकतांत्रिक देशों में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के क्रियाकलापों पर नजर रखने के लिए मीडिया को ‘चौथे स्तंभ’ के रूप में जाना जाता है। भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है।

यह स्वाभाविक बात है कि भारतीय मीडिया का स्वरूप वैश्विक मीडिया के सामने एक आईने के समान है। 18वीं शताब्दी के बाद से खासकर अमेरिकी स्वतंत्रता आंदोलन और फ्रांसीसी क्रांति के समय से जनता तक पहुंचने और उसे जागरूक कर सक्षम बनाने में मीडिया ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वहीं भारत की स्वतंत्रता में मीडिया की भूमिका को कोई भुला नहीं सकता। मीडिया स्वतंत्रता पूर्वक कार्य करके जन-जन तक सच्चाई पहुंचाने का कार्य करती है। मगर आज उसका अस्तित्व खतरे में है। वह अपने ही स्वरुप को दिन प्रतिदिन खोती ही जा रही हैं। आज पत्रकारों की स्थिति किसी से छुपी नहीं है।

लेकिन कुछ पत्रकारों की वजह से सम्पूर्ण मीडिया जगत बदनाम होता जा रहा है। टीवी डिबेट में तो ऐसे-ऐसे शब्द और अशोभनीय हरकतें खुद तथाकथित पत्रकार ही कर रहा है जिससे पत्रकारों के चरित्र पर प्रश्न चिन्ह उठ रहा है। दरअसल जब से मीडिया समूह कार्पोरेट हो गए तब से और भद्दगी बढ़ने लगी है। विदेशी ताकतें भारतीय मीडया हाउसों की पार्टनर बन गईं। अब वे भी पश्चिमी मीडिया की नकल उतारने का दबाव बना रहे है। आज जैसी टीवी डिबेट आप देख रहे हैं वह पहले विदेशी चैनलों पर ज्यादा दिखाई जाती थी। जूते-चप्पल चले,  कपड़े फाड़े जाय, किसी को बेइज्जत किया जाय तो टीआरपी बढ़ने की गुंजाइश रहती है।

भारतीय मीडिया पश्चिम की नकल कर रहा है। यह भी सच है कि कई मीडिया हाउसों के मालिक राजनेता, उद्योगपति, बिल्डर हैं और वे अपना - अपना एजेंडा चला रहे हैं। पत्रकारिता के इस नए युग में पत्रकारों का वर्गीकरण राजनैतिक आधार पर हो चुका है। इससे उनका दायरा भी सिमित हो चुका है जो लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा बनने जा रहा है। कुछ गिने चुने पत्रकार अगर सच दिखाने का प्रयास करते भी हैं तो उनकी या तो हत्या कर दी जाती है या उनके खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज कर उनको जेल भेज दिया जाता है।

धाराएं भी ऐसी लगाई जा रही हैं जैसे जल्दी जमानत न हो सके। आजाद विचारों वाली निडर पत्रकार गौरी लंकेश की वर्ष 2017 में बंगलुरु में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। पत्रकारिता जगत में यह पहली घटना नही थी। इससे पहले और बाद में भी कई पत्रकारों की हत्या हो चुकी है। हालात बता रहे हैं कि सच के लिए उठी हर आवाज या तो दबा दी जाती है या खरीद ली जाती है।

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