राजकीय महिला महाविद्यालय में साहित्यिक संवाद का हुआ आयोजन
राजकीय महिला महाविद्यालय डी एल डब्ल्यू के संस्कृत विभाग एवं इतिहास विभाग के संयुक्त तत्वावधान में 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' की अवधारणा पर आधारित साहित्यिक संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें भारतवर्ष के विभिन्न प्रांतों से कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, हरियाणा और इंग्लैंड से विद्वानों का आगमन हुआ और साहित्यिक संदर्भ पर विचार-विमर्श तथा काव्य पाठ हुआ । कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत संस्कृत विभागाध्यक्ष डाॅ रचना शर्मा तथा डाॅ कमलेश तिवारी विभागाध्यक्ष, इतिहास विभाग ने पुष्प गुच्छ और अंग वस्त्र से सत्कार किया। स्वागत विद्यालय के प्राचार्य प्रो राज किशोर ने किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मुक्ता जी ने
कहा 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' वैदिक युगीन ऋषि परम्परा का यह वाक्य भारत की विचारधारा की आधारशिला है। वसुधैव कुटुंबकम की प्रेरणा से भारत एक सूत्र में पिरोया हुआ है। मैत्री, बंधुत्व, समता , सहिष्णुता के आधार पर हमारा देश संगठित है।भारत प्राचीन काल से प्रगतिशील था और अंधविश्वासों का बहिष्कार करके ही हम श्रेष्ठ भारत का निर्माण कर सकते हैं। इस अवसर पर मुख्य अतिथि पद से प्रो विधि नागर ( विभागाध्यक्ष नृत्य कला संकाय काशी हिंदू विश्वविद्यालय) ने कहा 'कलम कड़छी और बरछी' का धनी सौराष्ट्र गुजरात हमेशा से ही साहित्यकारों की जन्मस्थली रहा है ।
नरसी मेहता के भजनों से प्रभावित यहां के जनमानस में भारत की एकता अखंडता को सदैव ही अक्षुण्ण रखने के लिए प्रतिबद्ध रहा है।उन्होंने 'गंगा अवतरण' पर डाॅ रचना शर्मा जी की रचना पर भावपूर्ण नृत्य प्रस्तुत कर श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया। लंदन से भारत की अखंडता को स्थापित करने के लिए इस कार्यक्रम में पधारी विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार शैल अग्रवाल ने कहा कि विदेश की धरती पर जब कोई अपना घर बनाता है तो पहली ईट जहां महत्वाकांक्षा और परिस्थितियां चुनती हैं, दूसरी निश्चित ही यादों की आंच में पकी और आंसुओं से तरी होती है। फिर एक बार भारतीय तो हमेशा ही भारतीय है , कहीं भी चला जाए वह भारत को ही ढूंढता रहता है और उससे जुड़ा रहना चाहता है उसे अपने अस्तित्व का हिस्सा मानता है और यह अपनत्व का भाव , अपनापन ही तमाम विविधताओं के बाद भी भारत को एक सूत्र में बांधे हुए हैं हमें इस कड़ी को जोड़े रखना है, मजबूत करना है कोई संदेह नहीं कि एक भारत श्रेष्ठ भारत है। इस अवसर पर बंगलुरू से आई विशिष्ट अतिथि के रूप में डाॅ इंदु झुनझुनवाला ने कहा कि दक्षिण भारत और उत्तर भारत के बीच की दूरी भाषागत ही अधिक है भारत की आत्मा तो दक्षिण में ही बसती है अतः अगर हम एक भारत श्रेष्ठ भारत की परिकल्पना को साकार करना चाहते हैं तो हमें हिंदी के साथ दक्षिण भारतीय भाषाओं के प्रति भी रुचि दिखानी होगी। साहित्यकारों की जिम्मेदारी इसमें अपनी अहम भूमिका निभाएगी। इस अवसर पर वरिष्ठ गीतकार हरीराम द्विवेदी ने कहा कि हमारे पूर्व ऋषि और मुनियों ने वसुधैव कुटुंबकम एवं सर्वे भवंतु सुखिन: की परिकल्पना की है जो सर्वधर्म समभाव का द्योतक है यहाँ विश्व बंधुत्व और पवित्र प्रेम की अजस्र धारा प्रवाहित है।
हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को इसी से संस्कारित करें।
डाॅ मंजरी पांडेय ने काव्यपाठ करते हुए अपनी बात कही" बात अब इस पार या उस पार होनी चाहिए। इस जुबानी जंग में भी धार होनी चाहिए।" काशी की वरिष्ठ कवयित्री डाॅ संगीता श्रीवास्तव ने अपने सूक्तों परक दोहो काव्य पाठ किया। इस अवसर पर चंदा प्रहलादका, शशि लाहोटी, सुषमा सिंह, डाॅ प्रियंका कटारिया, तथा नवल गुप्ता आदि ने काव्यपाठ किया और सविता भुवानिया की लघुकथा ने आज के वैयक्तिक परिवेश में घर परिवार में माता-पिता की नौकरी से बच्चे की मनःस्थिति का यथार्थवादी चित्रण कर सबको मर्माहत कर दिया। युवा कवयित्री श्रुति गुप्ता के मार्मिक बाल गीत - पालने में नन्हीं बेटी,भर रही किलकारियां सभी का मन मोह लिया।
डाॅ अमरनाथ सिंह अमर ने संस्मरण और कविता सुनायी।
रंगकर्मी अष्टभुजा मिश्र ने मुंशी प्रेमचंद की कहानी मंत्र के एक अंश की प्रस्तुति की।
इस अवसर पर विद्यालय की भावी पीढ़ी की बालिकाएं तथा समस्त महाविद्यालय के प्राध्यापक गण प्रोफेसर उमा श्रीवास्तव प्रोफेसर, शुभ लक्ष्मी त्रिपाठी, प्रोफेसर गोमतेश्वर पाल डॉ. रजनीश त्रिपाठी डॉ. संजय खरवार डॉ स्मिता डॉ. साधना अग्रवाल, डॉ. अनुज सिंह, डॉ. सौम्या शर्मा, डॉ. मनीषा सिंह निरंजन कुमार पांडेय, प्रबोध कुमार सिंह, अरविंद त्रिपाठी, दुर्गा, शरद के साथ गणमान्य अतिथि डाॅ शांति स्वरूप सिन्हा,अष्टभुजा मिश्र,गौतम अरोड़ा सरस,सुनील श्रीवास्तव, उपस्थित रहें।
कार्यक्रम का कुशल संचालन डाॅ रचना शर्मा ने किया।
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