मोदी और यूपी की योगी सरकार "रिवर रैंचिंग" की मदद से गंगा को करेगी प्रदूषण से मुक़्त
वाराणसी, 19 अगस्त। नमामि गंगे योजना के तहत गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए मोदी व उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ''रिवर रैंचिंग" की भी मदद ले रही है। नदियों की पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने और गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए 19 अगस्त को गंगा में भारतीय मेजर कार्प, कतला, रोहू व नैना नस्ल की मछलियां छोड़ी गई हैं।
वाराणसी, 19 अगस्त। नमामि गंगे योजना के तहत गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए मोदी व उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ''रिवर रैंचिंग" की भी मदद ले रही है। नदियों की पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने और गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए 19 अगस्त को गंगा में भारतीय मेजर कार्प, कतला, रोहू व नैना नस्ल की मछलियां छोड़ी गई हैं।
सेंट्रल इनलैंड फ़िशरी रिसर्च इंस्टिट्यूट, प्रयागराज और मत्स्य विभाग के सहयोग से प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए वाराणसी के गंगा नदी में 2 लाख विभिन्न प्रजाति की मछलियों को छोड़ा गया है। यह मछलियां नाइट्रोजन की अधिकता बढ़ाने वाले कारकों को नष्ट करेंगी और बड़े तादात में मछुआरों के आजीविका में सहायक होंगी।
मोदी-योगी सरकार गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए संकल्पित है। गंगा को प्रदूषण से बचाने के लिए एसटीपी का निर्माण। गंगा टास्क फोर्स, समेत गंगा को अविरल और निर्मल करने के लिए सभी उपाय कर रही है। इससे योगी सरकार को तेजी से सफलता भी मिल रही है। अब यूपी की योगी सरकार ने गंगा के ईको सिस्टम को बरकरार रखते हुए गंगा को साफ़ रखने के लिए रिवर रैंचिंग प्रक्रिया से मछलियों का इस्तमाल कर रही है। यूपी की योगी सरकार की मदद से सेंट्रल इनलैंड फ़िशरी रिसर्च इंस्टिट्यूट, प्रयागराज2 लाख मछलियां वाराणसी के गंगा नदी में असि घाट पर छोड़ी है।
मत्स्य विभाग के उपनिदेशक अनिल कुमार ने बताया कि गंगा में प्रदूषण को नियंत्रित करने और नदी का इको सिस्टम बरक़रार रखने के लिए "रिवर रांचिंग" प्रक्रिया का भी प्रयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में गंगा में अलग-अलग प्रजाति की मछलियां छोड़ी जाती है। यह मछलियां नाइट्रोजन की अधिकता बढ़ाने वाले कारकों को नष्ट करती हैं। साथ ही गंगा की गंदगी को तो समाप्त करती हैं और जलीय जंतुओं के लिए भी हितकारी होती हैं। उपनिदेशक अनिल कुमार ने बताया कि हर दिन गंगा में काफी संख्या में नाइट्रोजन गिरता है। यदि नाइट्रोजन 100 मिलीग्राम प्रति लीटर या इससे अधिक हो जाता है तो यह जीवन के अलग-अलग हिस्सों को प्रभावित करता है। इसके बढ़ने से मछलियों का प्रजनन नहीं हो पाता है। इससे इनकी प्राकृतिक क्षमता भी प्रभावित होती है।
इस योजना के तहत सरकार की कोशिश है कि मछलियों के जरिए नदियों में प्राकृतिक प्रजनन का कार्य शुरू किया जाए, क्योंकि इससे मछलियां संरक्षित होंगी और मछलियों के बढ़ने से अन्य जलीय जीवों में बढ़ोतरी होगी और प्राकृतिक प्रजनन ज्यादा होगा जिससे नदी का प्रदूषण भी कम होगा। मछुआरों को आजीविका का साधन भी प्राप्त होगा।
19 अगस्त को भारतीय मेजर कार्प कतला, रोहू व नैन नस्ल की मछलियां गंगा में डाली गई। खास बात यह है कि यह मछलियों के अंगुलिकाए गंगा में रहने वाले मछलियों के ही है। क्योंकि यदि मछलियों का प्राकृतिक वातावरण बदलेगा तो इससे उनका जीवन भी प्रभावित होगा। इसलिए पहले गंगा नदी से ही मछलियों को चुनकर के हैचरी में रखा गया, वहां उनके प्रजनन हुई और 70 एमएम का बच्चा तैयार किया गया।
'राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन' अंतर्गत मछली की विविधता का अन्वेषण, सर्वेक्षण, बहुमूल्य मछलियों जैसे-रोहू, कतला, मृगल, कालबासु और माहसीर के स्टॉक मूल्यांकन के साथ-साथ चयनित मछली प्रजातियों के बीज का उत्पादन और उसके स्टॉक में वृद्धि शामिल है। इस मौके पर आम नागरिकों से अपील किया कि नदी को स्वच्छ रखने की अपनी जिम्मेदारी का भी निर्वहन करे। कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री समेत कई गणमान्य लोग मौजूद थे।
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