प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने संस्कृत में पत्र लिखकर संस्कृत विद्वान् वागीश शास्त्री को दी श्रद्धांजलि
varanasi वाराणसी की समृद्ध संस्कृत परम्परा से एक ऐसा वरिष्ठ विद्वान् देश ने खोया है जिसने अपनी विद्वत्ता और सौम्य व्यवहार से भारत का और संस्कृत भाषा का प्रचार और प्रसार पूरी दुनिया में किया है। प्रो भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी
varanasi वाराणसी की समृद्ध संस्कृत परम्परा से एक ऐसा वरिष्ठ विद्वान् देश ने खोया है जिसने अपनी विद्वत्ता और सौम्य व्यवहार से भारत का और संस्कृत भाषा का प्रचार और प्रसार पूरी दुनिया में किया है। प्रो भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी जिन्हें उनके शिष्य गुरुदेव या फिर वागीश शास्त्री के नाम से जानते थे वे आज सभी अत्यन्त ही शोक में दुबे हैं। वागीश का अर्थ है वाणी का स्वामी अर्थात् वृहस्पति। वागीश शास्त्री शास्त्रों के अद्वितीय विद्वान् थे जिन्होंने संस्कृत की दुर्लभ पाण्डुलिपियों को ढूंढ़कर उनका प्रकाशन कराया।
वागीश शास्त्री पिछले कई दशक से छात्रों को घर पर निःशुक्ल व्याकरण पढ़ाते थे। सम्पूर्णाानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से सेवा निवृत्त होने के बाद वागीश शास्त्री ने भारत से बाहर जाकर विदेशियों को सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति में दीक्षित किया है। उन्होंने संस्कृत को सीखने और पढ़ाने की एक ऐसी सरल पद्धति का निर्माण किया है जिसके कारण अनेक विदेशी छात्र सरलतया संस्कृत सम्भाषण करने में सक्षम हुए हैं. प्रो भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी ने यूरोप के कई देशों में वेदान्त, योग और तन्त्र शास्त्र का प्रशिक्षण दिया है और साथ ही संस्कृत व्याकरण पर अनेक पुस्तकें भी लिखी हैं। प्रो त्रिपाठी विगत कुछ दिनों से रूग्ण थे और उन्हें वाराणसी के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहाँ पर उन्होंने बुधवार को अंतिम साँस ली. उनके निधन से देश और विदेश में उनके परिचित और उनके हजारों शिष्य दुःखी हैं। प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने उनके पुत्र आशापति शास्त्री को संस्कृत में पत्र लिख कर शोक संवेदना प्रकट की है. मोदी ने अपने पत्र में लिखा है कि 'प्रो भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी जी के निधन के विषय में जानकर मुझे अत्यधिक दुःख का अनुभव हुआ है। इस कष्टप्रद काल में मेरी संवेदना परिवार और शुभ चिन्तकों के साथ है। संस्कृत साहित्य, व्याकरण, काव्य, भाषाविज्ञान, भारतीय इतिहास, संस्कृति आदि अनेक विषयों पर प्रो वागीश शास्त्री द्वारा रचित और सम्पादित विभिन्न ग्रन्थ अमूल्य हैं। उनका सम्पूर्ण जीवन समृद्ध संस्कृत भाषा के संरक्षण में जन जन तक पहुँचाने में समर्पित था। सरल विधि से संस्कृत शिक्षण की पद्धति का विकास करके उन्होंने भाषा के साथ नये लोगों को जोड़ने के लिए प्रो वागीश शास्त्री का योगदान उल्लेखनीय है। संस्कृत सेवा के लिए उनके प्रयास सर्वथा याद किये जायेंगे। प्रो वागीश शास्त्री आज शरीर से हमारे साथ नहीं हैं किन्तु उनके संस्कार और जीवन मूल्य परिजनों के साथ हमेशा रहेंगे। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वह दिवंगत की आत्मा की शान्ति प्रदान करें। शोक संतप्त पारिवारिक और शुभ चिन्तकों को इस दुःख को वहन करने के लिए धैर्य और बल प्रदान करें।'( liveup)
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