राकेश न्यायिक की मेहनत रंग लाई सिकरौरा नरसंहार कांड में उच्च न्यायालय में सुनवाई हुई तेज जल्द आ सकता है बड़ा फैसला
37 साल पहले हीरावती के पति, दो देवर और चार मासूम बच्चों की निर्मम हत्या कर दी गई थी. बृजेश सिंह के खिलाफ वाराणसी स्थित बलुआ थाना में मुकदमा दर्ज किया गया था. आईपीसी की धारा 148, 149, 302, 307, 120बी एवं आर्म्स एक्ट में ब्रजेश सिंह को आरोपी बनाया गया. सामूहिक हत्याकांड में हीरावती की बेटी घायल हुई थी. याचिकाकर्ता की दलील है कि जिला कोर्ट ने बेटी के बयान पर गौर नहीं किया. पुलिस की कार्यशैली पर भी गंभीर सवाल उठाए गए हैं. हत्याकांड का चश्मदीद गवाह मौजूद होने के बावजूद पुलिस किसी को भी सजा नहीं दिला पाई. हाईकोर्ट में 37 साल पुराने मामले की सुनवाई शुरू होने से चंदौली का सामूहिक हत्याकांड एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है
राकेश न्यायिक की मेहनत रंग लाई सिकरौरा नरसंहार कांड में उच्च न्यायालय में सुनवाई हुई तेज जल्द आ सकता है बड़ा फैसला
जैसा कि आपको ज्ञात है कि तत्कालीन वाराणसी के बलुआ थाना क्षेत्र में मार्च 1986 में सिकरौरा गांव में एक ही परिवार के 7 लोगों की हत्या कर दी गई थी इस हत्याकांड में मुख्य आरोपी माफिया डॉन तथा तथा वर्तमान विधान परिषद सदस्य बृजेश सिंह मुख्य आरोपी बनाए गए थे लंबी फरारी और मुकदमे की पत्रावली गायब होने के कारण मुकदमा ट्रायल के स्टेज पर ही नहीं आ रहा था जब पत्रावली गायब होने की सूचना वाराणसी के लेखक साहित्यकार, चिंतक न्यायिक समाजसेवी राकेश न्यायिक को मिली तो
उन्होंने उसे अपने परिवार की लड़ाई मानकर मृतक परिवार में बची एकमात्र हीरावती देवी को न्याय दिलाने का संकल्प लिया लंबी जद्दोजेहद के बाद तथा उच्च न्यायालय के दखल के बाद मुकदमे की पत्रावली पूरा कानूनी रूप से तैयार की गई और मुकदमा ट्रायल के स्टेज पर आया और तत्कालीन पीठासीन अधिकारी राजीव कमल पांडे ने बृजेश सिंह को बरी कर दिया ट्रायल कोर्ट के फैसले को इस मुकदमे के विधिक पैरोकार और लेखक साहित्यकार,चिंतक,समाजसेवी राकेश न्यायिक ने तथा मुकदमे की वादिनी हीरावती देवी ने ट्रायल कोर्ट द्वारा बरी किए जाने को उच्च न्यायालय में चुनौती दी जिस पर सुनवाई में तेजी लाते हुए उच्च न्यायालयसुनवाई तेज कर दी है सुनवाई पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए विधिक विधिक पैरोकार का लेखक साहित्यकार समाजसेवी चिंतक राकेश न्यायिक ने कहा कि यह घटना एक ही परिवार के साथ लोगों के सामूहिक हत्या का है और यह मामला rare of rarest(दुर्लभतम से दुर्लभतम क्रूरतम से क्रूरतम कहां है ऐसे में मुझे पूरी उम्मीद है कि माफिया डॉन बृजेश सिंह को फांसी की सजा हो सकती है और यह मुकदमा अपराधिकृत करने वालों के लिए एक मिसाल बनकर माफियाओं में दहशत पैदा करेगा, उन्होंने आगे बताया कि इस कानूनी लड़ाई में मैंने अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया है आज विगत कई वर्षों से खुद को एक कमरे में बंद कर लड़ाई को आगे बढ़ाने का काम किया है यहां तक की इस लड़ाई में मेरे घर के गृहणियों का सब गहना और मेरी अल्टो कर तक बिक चुकी है इसके बाद भी मैं अपना हिम्मत नहीं हारा जब्कि मुझे धमकी और खरीदने का पूरा प्रयास कर दबाव बनाने का काम किया है और इस पूरी कान में लड़ाई में मुझे पूरी उम्मीद है कि पीड़िता हीरावती देवी को न्याय जल्द मिलेगा वहीं सुनवाई तेजी होने के कारण बृजेश सिंह खेमे में बेचैनी भी बढ़ गई है
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37 साल पुराने मुकदमे की HC में सुनवाई, पूर्व एमएलसी बृजेश सिंह को सजा दिए जाने की मांग
37 साल पहले पुराने मुकदमे की इलाहाबाद हाईकोर्ट में फाइनल सुनवाई चल रही है। मामला चंदौली जिले में हुए सामूहिक नरसंहार का है. जघन्य हत्याकांड में बरी हो चुके पूर्वांचल के बाहुबली पूर्व एमएलसी बृजेश सिंह को सजा दिए जाने की मांग की गई है। निचली अदालत के फैसले को हीरावती नाम की महिला ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है। महिला की तरफ से वकील उपेंद्र उपाध्याय चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस अजय भनोट की खंडपीठ के सामने पेश हुए। उन्होंने मुकदमे के सबूतों और ट्रायल कोर्ट में हुई बहस को सिलसिलेवार ढंग से पढ़ा। हाईकोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख 30 अक्टूबर को निर्धारित कर दी।
फिर चर्चा में 37 साल पुराना चंदौली नरसंहार
अगली सुनवाई में महिला के वकील की ओर से गवाही पढ़ी जाएगी. बहस पूरी होने के बाद बृजेश सिंह के वकील पक्ष रखेंगे।
बता दें कि बलुआ थाना के सिकरौरा गांव में 9 अप्रैल 1986 को सात यादवों की हत्या कर दी गई थी। बृजेश सिंह को 7 लोगों की हत्या का आरोपी बनाया गया था। वाराणसी जिला कोर्ट ने 2018 में सभी 13 आरोपियों को बरी कर दिया था। आरोपियों को गवाहों के बयान में विरोधाभास होने का फायदा मिला। ट्रायल कोर्ट और सेशन कोर्ट बृजेश सिंह को 2018 में बरी कर चुका है। निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में हो रही अंतिम सुनवाई
37 साल पहले हीरावती के पति, दो देवर और चार मासूम बच्चों की निर्मम हत्या कर दी गई थी. बृजेश सिंह के खिलाफ वाराणसी स्थित बलुआ थाना में मुकदमा दर्ज किया गया था. आईपीसी की धारा 148, 149, 302, 307, 120बी एवं आर्म्स एक्ट में ब्रजेश सिंह को आरोपी बनाया गया. सामूहिक हत्याकांड में हीरावती की बेटी घायल हुई थी. याचिकाकर्ता की दलील है कि जिला कोर्ट ने बेटी के बयान पर गौर नहीं किया. पुलिस की कार्यशैली पर भी गंभीर सवाल उठाए गए हैं. हत्याकांड का चश्मदीद गवाह मौजूद होने के बावजूद पुलिस किसी को भी सजा नहीं दिला पाई. हाईकोर्ट में 37 साल पुराने मामले की सुनवाई शुरू होने से चंदौली का सामूहिक हत्याकांड एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है
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37 साल पहले पुराने मुकदमे की इलाहाबाद हाईकोर्ट में फाइनल सुनवाई चल रही है। मामला चंदौली जिले में हुए सामूहिक नरसंहार का है. जघन्य हत्याकांड में बरी हो चुके पूर्वांचल के बाहुबली पूर्व एमएलसी बृजेश सिंह को सजा दिए जाने की मांग की गई है। निचली अदालत के फैसले को हीरावती नाम की महिला ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है। महिला की तरफ से वकील उपेंद्र उपाध्याय चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस अजय भनोट की खंडपीठ के सामने पेश हुए। उन्होंने मुकदमे के सबूतों और ट्रायल कोर्ट में हुई बहस को सिलसिलेवार ढंग से पढ़ा। हाईकोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख 30 अक्टूबर को निर्धारित कर दी।
फिर चर्चा में 37 साल पुराना सिकरौरा नरसंहार
अगली सुनवाई में महिला के वकील की ओर से गवाही पढ़ी जाएगी. बहस पूरी होने के बाद बृजेश सिंह के वकील पक्ष रखेंगे।
बता दें कि बलुआ थाना के सिकरौरा गांव में 9 अप्रैल 1986 को सात यादवों की हत्या कर दी गई थी। बृजेश सिंह को 7 लोगों की हत्या का आरोपी बनाया गया था। वाराणसी जिला कोर्ट ने 2018 में सभी 13 आरोपियों को बरी कर दिया था। आरोपियों को गवाहों के बयान में विरोधाभास होने का फायदा मिला। ट्रायल कोर्ट और सेशन कोर्ट बृजेश सिंह को 2018 में बरी कर चुका है। निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में हो रही अंतिम सुनवाई
37 साल पहले हीरावती के पति, दो देवर और चार मासूम बच्चों की निर्मम हत्या कर दी गई थी. बृजेश सिंह के खिलाफ वाराणसी स्थित बलुआ थाना में मुकदमा दर्ज किया गया था. आईपीसी की धारा 148, 149, 302, 307, 120बी एवं आर्म्स एक्ट में ब्रजेश सिंह को आरोपी बनाया गया. सामूहिक हत्याकांड में हीरावती की बेटी घायल हुई थी. याचिकाकर्ता की दलील है कि जिला कोर्ट ने बेटी के बयान पर गौर नहीं किया. पुलिस की कार्यशैली पर भी गंभीर सवाल उठाए गए हैं. हत्याकांड का चश्मदीद गवाह मौजूद होने के बावजूद पुलिस किसी को भी सजा नहीं दिला पाई. हाईकोर्ट में 37 साल पुराने मामले की सुनवाई शुरू होने से चंदौली का सामूहिक हत्याकांड एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है
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