पंकज उधास के शाम-ए-बनारस में झूमा काशी का रुद्राक्ष, रूमानी अहसास से भीग गए श्रोता -
शाम-ए-बनारस की शुरुआत रविवार को रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर के खचाखच भरे हॉल में पंकज उधास ने मीराबाई के भजन पायो जी मैंने राम रतन धन पायो... से की। इसके बाद न फूल चढ़ाऊं न माला चढ़ाऊं, ये गीतों की गंगा मैं तुझको चढ़ाऊं... सुनाया।
मखमली आवाज से गजल प्रेमियों के दिलों पर राज करने वाले पद्मश्री पंकज उधास की आवाज का जादू रुद्राक्ष वाराणसी में रविवार शाम सिर चढ़कर बोला। मंच पर पंकज उधास और सामने मौजूद उनके चाहने वालों की भीड़। गजलों के जरिए प्यार, मोहब्बत, इश्क और चाहत का रूमानी अहसास हर दिल को छू गया। वरिष्ठ नागरिकों के साथ ही युवा भी उनकी नज्मों पर एक ठंडी हवा के झोंके की तरह महसूस करते रहे।
अग्रवाल महासभा चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से आयोजित शाम-ए-बनारस की शुरुआत रविवार को रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर के खचाखच भरे हॉल में पंकज उधास ने मीराबाई के भजन पायो जी मैंने राम रतन धन पायो... से की। इसके बाद न फूल चढ़ाऊं न माला चढ़ाऊं, ये गीतों की गंगा मैं तुझको चढ़ाऊं... सुनाया।
सदाबहार गजलों से महफिल जवान हो गई
इसके बाद गजल की महफिल आप जिनके करीब होते हैं, वो बड़े खुशनसीब होते हैं... से धीरे-धीरे परवान चढ़ने लगी। चिट्ठी आई है आई है चिठ्ठी आई है, चांदी जैसा रंग है तेरा, सोने जैसे बाल...पर तो लोग खुद को झूमने से नहीं रोक सके। इसके बाद मोहे आई ना जग से लाज मैं ऐसा जोर के नाची आज कि घुंघरू टूट गए, जिएं तो जिएं कैसे बिन आपके... जैसी उनकी सदाबहार गजलों से महफिल जवान हो गई।
अग्रवाल समाज के लोगों से भरा रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर तालयों की गूंज एवं हर-हर महादेव के जयघोष से गूंजता रहा। रुद्राक्ष के बाहर भी सैकड़ों की संख्या में उपस्थित लोगों ने एलईडी स्क्रीन पर कार्यक्रम का लाइव लुत्फ उठाया। अंत में संस्था के सदस्यों ने उन्हें अंगवस्त्र एवं मोमेंटो देकर सम्मानित किया।
इसके पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ पद्मश्री पंकज उधास ने महाराज अग्रसेन की मूर्ति पर माल्यार्पण के साथ किया। स्वागत संतोष कुमार अग्रवाल, संचालन डॉ. राजेश अग्रवाल एवं डॉ रचना अग्रवाल ने किया। संयोजन नीरज अग्रवाल और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मधु अग्रवाल ने किया। इस दौरान श्री काशी अग्रवाल समाज (पीली पर्ची) के सदस्य, मारवाड़ी समाज, भारत विकास परिषद, लायंस क्लब, रोटरी क्लब के पदाधिकारी उपस्थित रहे।
पंकज उधास बोले- बाजारवाद के दौर में गजल की अपनी जगह स्थिर
पद्मश्री पंकज उधास ने कहा कि काशी मोक्ष की नगरी है और जहां काशी विश्वनाथ धाम हो, वहां रहने वाले लोग धन्य हैं। जो बाबा के करीब होते हैं वे बड़े खुशनशीब होते हैं। बातचीत के दौरान गजल गायक पंकज उधास ने कहा कि वैश्वीकरण और बाजारवाद के दौर में गजल की अपनी जगह स्थिर है।
गजल संगीत नहीं संस्कार है। यह बिकने की वस्तु नहीं है। गजल में कोई ठहराव नहीं आया है, यह आज भी प्रवाहमान है। वर्तमान में कई नए गजल गायक काफी बेहतर कर रहे हैं और जल्द ही वे लोगों के सामने आएंगे। गजल आत्मा से निकली हुई और रूह को सुकून देती है। यही कारण है कि चिठ्ठी आई है जैसी गजलें आज भी लोगों की आंखें नम कर देती है।
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