उ०प्र० जैन विद्या शोध संस्थान एवं सकल दिगम्बर जैन समाज वाराणसी द्वारा संगोष्ठी का हुआ आयोजन
आजादी का अमृत महोत्सव एवं मिशन शक्ति के अन्तर्गत उ०प्र० जैन विद्या शोध संस्थान (संस्कृति विभाग, उ०प्र० सरकार) एवं सकल दिगम्बर जैन समाज वाराणसी के संयुक्त तत्वावधान में अनेकान्त सिद्धांत प्रवर्तन के अन्तर्गत अनेकान्त सिद्धांत की उपादेयता विषय पर विद्वत् संगोष्ठी भगवान पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, भेलूपुर में महिला मण्डल द्वारा प्रस्तुत मंगलाचरण के साथ शुरु हुई। अतिथियों ने दीप प्रज्जवलन किया।
उद्- घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि संम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हरे राम त्रिपाठी ने कहाकि भारतीय संस्कृति सभी को समाहित करने का दर्शन है, इसका वैशिष्ट है अनेकान्त सिद्धांत। जैन दर्शन का यह सिद्धांत सर्वकालिक है जिसकी प्रासंगिकता वर्तमान काल में अधिक है।
विशिष्ट अतिथि डीसीपी वाराणसी राम सेवक गौतम ने कहा कि आध्यात्म भारतीय संस्कृति का मूल एक है उसकी विवेचना धर्मों में अलग अलग है। जैन संस्कृति भी सनातन संस्कृति है सभी धर्मों का लक्ष्य एक है। सभी का समझने का तरीका भिन्न है पर एक रूपता के लिए अनेकान्त सिद्धांत है। अनेकान्त का सिद्धांत सहजता प्रदान करता है। आज राष्ट्र को अनेकान्त की आवश्यकता है।
आमुख वक्तव्य देते हुये प्रो. फूल चन्द्र जैन प्रेमी ने बताया कि जैन धर्म अत्यन्त प्राचीन है। आज भी खुदाई करने पर जैन कलामूर्ति मिलती हैं। जैन साहित्य की रचना प्राकृत भाषा में हुयी ।प्राकृत भाषा संस्कृत भाषा और लिपि से प्राचीन है जिसकी प्रमाणिकता शास्त्रों से स्थापित है।
उद्-घाटन सत्र के अन्त में अतिथियो के साथ श्राताओं एवं विद्वानों ने तिरंगा हाथ में लेकर आजादी का अमृत महोत्सव मनाया।
उ.प्र. जैन विद्या शोध संस्थान के उपाध्यक्ष प्रो.(डॉ.) अभय कुमार जैन अपने अध्यक्षीय उद्बोधन मे बताया कि विचारों में अनेकान्त और व्यवहार में अहिंसा युद्ध का समाधान है। अनेकान्त सिद्धांत परस्पर मैत्री , सद्भाव और सहिष्णुता का संदेश है। डॉ. अभय कुमार जैन ने विचारों में अनेकान्त और व्यवहार में अहिंसा द्वारा वर्तमान समय की युद्ध की विभीषिका को समाप्त कर विश्व में शान्ति स्थापित हो सकती है। आज अनेकान्त सिद्धांत की उपादेयता विश्व की समस्त मानव जाति के कल्याण के लिये सर्वाधिक है।
सत्र में अतिथियों का सम्मान संस्थान की ओर से निदेशक डॉ. राकेश सिंह ने किया।संस्थान की ओर से धर्मपरायण श्रीमती राजमणि को विशिष्ट रूप से सम्मानित किया गया।
प्रथम सत्र में प्रो. हरि शंकर पाण्डेय, प्रो. मुकुल राज मेहता, प्रो. कमलेश कुमार जैन, प्रो. सुमन जैन,BHU, प्रो. अशोक कुमार जैन, डॉ. इन्दू जैन, प्रो प्रद्युम्न शाह सिंह , प्रो. सुमन जैन MM BHU,डॉ. आनन्द जैन ने व्यख्यानों के माध्यम से कहाकि अनेकान्त सहृदय बनाता और दूसरों के विचारों का खण्डन नहीं करता वरन् अच्छे विचारों को ग्रहण करने की प्रेरणा देता है। प्रो. मारुती नन्दन तिवारी और प्रो. शान्ति स्वरूप सिन्हा अनेकान्त सिद्धांत की उपादेयता पर LCD के माध्यम से व्याख्यान दिया। प्राचीन जैन मूर्ति कला और सांस्कृतिक पहलुओं को वर्णन करते हुए समझाया कि जैन शासन शान्ति और अहिंसा का संवाहक है।
सायंकाल समापन एवं सम्मान सत्र में आगन्तुक विद्वानों और जैन समाज के विशिष्ट सहयोगी श्रेष्ठि व्यक्तियों श्री दीपक जैन ,ई. ऋषभ चन्द्र जैन, श्री अरुण कुमार जैन ,
श्रीमती प्रमिला सामरिया उ. प्र. जैन विद्या शोध संस्थान उपाध्यक्ष प्रो.( डॉ. ) अभय कुमार जैन और निदेशक डॉ. राकेश सिंह ने संस्थान की ओर से सम्मानित किया। डॉ. राकेश सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
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