महाकुंभ के सुअवसर पर काशी आए श्रृंगेरी शारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु श्रीविधुशेखर भारती स्वामी जी ने केदारखण्ड में आम जनों को दिया दर्शन, दिया आशीर्वाद। आदि शंकराचार्य से जुडी बनारस की स्मृतियों को किया साझा।

महाकुंभ के सुअवसर पर काशी आए श्रृंगेरी शारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु श्रीविधुशेखर भारती स्वामी जी ने केदारखण्ड में आम जनों को दिया दर्शन, दिया आशीर्वाद। आदि शंकराचार्य से जुडी बनारस की स्मृतियों को किया साझा।

महाकुंभ के सुअवसर पर काशी आए श्रृंगेरी शारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु श्रीविधुशेखर भारती स्वामी जी ने केदारखण्ड में आम जनों को दिया दर्शन, दिया आशीर्वाद। आदि शंकराचार्य से जुडी बनारस की स्मृतियों को किया साझा। 


आज दिनांक 03-02-25 दिन सोमवार वसंत पंचमी के शुभ अवसर पर दक्षिणाम्नाय श्रृंगेरी शारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु श्रीविधुशेखर भारती स्वामी जी का काशीखण्ड के सुप्रसिद्ध केदारखण्ड में स्थित गौरीकेदारेश्वर मन्दिर के समीप में स्थित श्रृंगेरी मठ पर क्षेमेश्वर घाट की ओर से दोपहर 12.30 बजे आगमन हुआ।
मठ में कुम्भाभिषेक आदि पूजन कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। इसके बाद सायंकाल 6 बजे काशी के नारद घाट में स्थित श्रीराजराजेश्वरी चैरिटेबल ट्रस्ट में उनका आगमन हुआ। वहां पर क्षेमेश्वर घाट से देवनाथ पुरा में स्थित भवन में उनका स्वागत समाज के सभी लोगों ने पुष्प समर्पण द्वारा किया। वेद मंत्रों के सस्वर पाठ से क्षेत्र गुंजायमान रहा। शास्त्रों के अध्येता और आम आस्तिक काशीवासी सहित महाकुंभ के सुअवसर पर काशी आए लोगों ने उक्त पुण्यकार्य में सहभागिता की। वहां पर स्वामी जी ने अपने शुभाशीर्वचनों से सभी पर अनुग्रह किया।

स्वामी जी ने अपने भाषण में सभी को धर्म के पालन का उपदेश दिया। धर्म के महत्व को समझाया। स्वामी जी ने कहा कि धर्म ही मनुष्यों का एक विशेष कर्तव्य है जो उन्हें पशुओं से अलग करता है। उन्होंने कहा कि मृत्यु के बाद भी मनुष्य के साथ यदि कुछ जाता है तो वह उसका धर्म ही जाता है। धर्म के अलावा बाकी सब कुछ चाहे धन हो या वैभव यहीं पर रह जाता है। इसलिए मनुष्यों को अपने धर्म का पालन करना चाहिए। धर्म से ही सबका कल्याण होता है। सभी लोगों को कल्याण के मार्ग पर ही अग्रसर होना चाहिए। 


स्वामी श्री ने आदि शंकराचार्य जी की बनारस जुडी स्मृतियों को साझा करते हुए कहा की आपलोग भाग्यशाली हैं की जिस काशी में प्रवास करने के लिए लोग कई जन्मो तक पुण्य जुटाते हैं तब आ पाते हैं वंहा आप सपरिवार जीवन बिता रहे हैं।  इस सौभाग्य का सदुपयोग परमार्थ हित में और धर्म कार्य में लगकर करें. अद्वैत वेदांत के प्रणोता आद्य शंकराचार्य ने दुनिया को ज्ञान दिया, इसकी अजस्त्र धारा उनमें देवाधिदेव की नगरी काशी में ही फूटी। काशी विश्वनाथ के दरस परस के निमित्त महादेव की नगरी में आगमन की राह से इसकी शुरुआत हुई। 
वास्तव में अद्वैत ब्रह्मवादी आचार्य शंकर केवल निर्विशेष ब्रह्म को सत्य मानते थे। ब्रह्म मुहूर्त में शिष्यों संग स्नान के लिए मणिकर्णिका घाट जाते आचार्य का राह में बैठी विलाप करती युवती से सामना हुआ। युवती मृत पति का सिर गोद में लिए बैठी करुण क्रंदन कर रही थी। शिष्यों ने उससे शव हटाकर आचार्य शंकर को रास्ता देने का आग्रह किया। दुखित युवती के अनसुना करने पर आचार्य ने खुद विनम्र अनुरोध किया। इस पर युवती के शब्द थे कि हे संन्यासी, आप मुझसे बार-बार शव हटाने को कह रहे हैं। इसकी बजाय आप इस शव को ही हट जाने के लिए क्यों नहीं कहते। आचार्य ने दुखी युवती की पीड़ा को महसूस करते हुए कहा कि देवी! आप शोक में शायद यह भी भूल गई हैं कि शव में स्वयं हटने की शक्ति नहीं होती। स्त्री ने तुरंत उत्तर दिया- महात्मन् आपकी दृष्टि में तो शक्ति निरपेक्ष ब्रह्म ही जगत का कर्ता है फिर शक्ति के बिना यह शव क्यों नहीं हट सकता। एक सामान्य महिला के ऐसे गंभीर, ज्ञानमय व रहस्यपूर्ण शब्द सुनकर आचार्य वहीं बैठ गए। समाधि लग गई और अंत:चक्षु में उन्होंने देखा कि सर्वत्र आद्याशक्ति महामाया लीला विलाप कर रही हैं। उनका हृदय अविवर्चनीय आनंद से भर गया। मुख से मातृ वंदना की शब्द धारा फूट चली। इसके साथ आचार्य शंकर ऐसे महासागर बन गए जिसमें अद्वैतवाद, शुद्धाद्वैतवाद, विशिष्टा द्वैतवाद, निगरुण ब्रह्म ज्ञान के साथ सगुण साकार भक्ति धाराएं एक साथ हिलोरें लेने लगीं। उन्होंने यह भी अनुभव किया कि ज्ञान की अद्वैत भूमि पर जो परमात्मा निर्गुण निराकार ब्रह्म है वही द्वैत भूमि पर सगुण साकार रूप हैं। उन्होंने निर्गुण और सगुण दोनों का समर्थन करके निर्गुण तक पहुंचने के लिए सगुण की उपासना को अपरिहार्य सीढ़ी माना। ज्ञान और भक्ति की मिलन धरती पर उन्होंने यह भी अनुभव किया कि अद्वैत ज्ञान ही सभी साधनाओं की परम उपलब्धि है। उन्होंने 'ब्रह्मं सत्यं जगत् मिथ्या का उद्घोष भी किया। 'सौन्दर्य लहरी, 'विवेक चूड़ामणि प्रस्थान त्रयी भाष्य समेत भक्ति रसपूर्ण स्त्रोतों की रचना की। अपने अकाट्य तर्को से उन्होंने शैव -शाक्त-वैष्णवों का द्वंद्व समाप्त किया और पंचदेवोपासना की राह प्रशस्त की। हिमालय समेत संपूर्ण भारत की यात्र की और धर्म रक्षार्थ चार शंकराचार्य पीठ स्थापित किए।  
इस कार्यक्रम में उस क्षेत्र के समाज के सभी लोगों की भागीदारी रही। कार्यक्रम सभा का संचालन डॉ तुलसी कुमार जोशी ने किया। महत्वपूर्ण उपस्थितियों में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान के संकाय प्रमुख प्रोफेसर राजाराम शुक्ल, श्रृंगेरी मठ के चल्ला अन्नपूर्णा, नीरज पारिख, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के डॉ गणेश्वर नाथ झा, श्री राज राजेश्वरी चैरिटेबल ट्रस्ट के सदस्य तुलसी गजानन जोशी, काशी क्षेत्र तीर्थ पुरोहित तुलसी मनोज कुमार जोशी एवं अन्य समाज के लोगों की उपस्थिति रही।

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