बहादुर शाह की पहली पुण्य तिथि पर विशेष
1 जनवरी सन 1939 में जन्मे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुराने और स्थायी स्वयंसेवक स्व. श्री बहादुर शाह जी काशी का सुप्रसिद्ध नाम है। काशी में जब संघ की नींव रखी गई उस समय आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। काशी में संघ के संस्थापक सदस्य रहे। उन्होंने हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों, राष्ट्रहित में कार्य करने हेतु मार्गदर्शन हो या चारित्रिक पतन को रोकने की दिशा में कार्य हो। इन्होंने संघ के हर दायित्व को बखूबी से निभाया और अस्वस्थ होने के पर भी वह दैनिक शाखा लगाया करते थे।
बहादुर शाह की पहली पुण्य तिथि पर विशेष 1 जनवरी सन 1939 में जन्मे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुराने और स्थायी स्वयंसेवक स्व. श्री बहादुर शाह जी काशी का सुप्रसिद्ध नाम है। काशी में जब संघ की नींव रखी गई उस समय आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। काशी में संघ के संस्थापक सदस्य रहे। उन्होंने हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों, राष्ट्रहित में कार्य करने हेतु मार्गदर्शन हो या चारित्रिक पतन को रोकने की दिशा में कार्य हो। इन्होंने संघ के हर दायित्व को बखूबी से निभाया और अस्वस्थ होने के पर भी वह दैनिक शाखा लगाया करते थे।
सन् 1954 में उन्होंने संग को अपनाया एवं स्वयंसेवक बने, उनका पद एक स्वयंसेवक से लेकर नगर के संघचालक, बौद्धिक प्रमुख,शारीरिक प्रमुख, पौढ़ प्रमुख,व्यवस्था प्रमुख के साथ महानगर के अनेक पदों का उत्तरदायित्व रहा। संघ के प्रति उनका झुकाव बचपन से रहा,सन् 1954 में संघ से जुड़कर राष्ट्रसेवा में निरंतर लगे रहे,संघ के प्रति उनका आदर भाव प्रेरक रहा, जीवन में सन 1954 से 2022 तक के केवल बीच केवल दो-तीन महीने है शाखा नहीं जा सके, जिसका उन्हें बेहद खेद रहता था और अक्सर इसकी चर्चा किया करते थे,परंतु निरंतर शाखा जाना और अपने ईश्वर से पहले राष्ट्र की आराधना एवं भूमि पूजन किया करते थे,संघ से जुड़े इन्हें 69 वर्ष हो गए,
और वह तब से संघ से जुड़े जब संघ को बहुत कम लोग जानते थे,जीवन पर्यंत आपका संघ के प्रति उतना ही समर्पण भाव रहा जितना शुरुआती दिनों में था।
सन 1956 में अखिल भारतीय जनसंघ के कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी बाजपेई जी बनारस आए हुए थे,उस समय उनके साथ में जगन्नाथ राव जोशी,भारतीय जन संघ के नेता स्व.श्री नानाजी देशमुख, मानवता के उपासक व सिद्धांत वादी स्व.जगन्नाथ राव जोशी,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक,जम्मू कश्मीर प्रजा परिषद के संस्थापक और मंत्री, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संस्थापक,भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष स्व.श्री बलराज मधोक व समाजसेवी श्री पीतांबर दास समेत संघ के सैकड़ों दिग्गज कार्यकर्ता उपस्थित थे और उस समय श्री बहादुर शाह जी जनसंघ में मुख्य शिक्षक की भूमिका में मौजूद थे। जंक्शन की कार्यकारिणी को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ जमा हुई थी।1956 में अखिल भारतीय जनसंघ के कार्यकारिणी में देश-दुनिया से लगभग ढाई सौ कार्यकर्ता शामिल हुए थे,उस समय आप कार्यकारिणी में मुख्य शिक्षक की भूमिका अदा कर रहे थे।उसी समय उनकी मुलाकात पूर्व प्रधानमंत्री स्व.श्री अटल बिहारी बाजपेई जी से हुई थी। सामाजिक कार्य से जोड़कर उन्होंने सैकड़ों लोगों को नया जीवन,नया रोजगार,घर इत्यादि में पूर्ण सहयोग दिया।
सादा-जीवन,उच्च-विचार को जीवन का मूल मंत्र माना और इन्हें आत्मसात करके उन्होंने अपना पूरा जीवन संघ और राष्ट्र को समर्पित किया,आपने कई विद्यालयों के लिए जमीन दान की,सैकड़ों मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया,व कई अनाथ बच्चों को शिक्षित कर सैकड़ो कन्याओं के विवाह में आर्थिक सहायता की।
आप की प्रेरणा से हजारों युवाओं में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति निष्ठा एवं समर्पण की भावना जागृत हुई और वे संघ से जुड़े। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के विशाल सम्मेलनों में आपका विशेष योगदान रहा।भारतीय शिशु मंदिर के सन 1976-1977 के अखिल भारतीय सम्मेलन में बरसात के कारण सारी व्यवस्था जब ध्वस्त हो गई थी,तब आपने अपने सहयोगियों के साथ पूरे बनारस के जलपानगृहों से पूड़ी-सब्जी,जलेबी लाकर सम्मेलन में शामिल लोगों को जलपान व भोजन कराया।
आपातकाल की अवधि में युवाओं को सत्याग्रह के लिए तैयार किया एवं सैकड़ों युवाओं जिनकी गिरफ्तारी हुई थी उन सभी के परिवारजनों का भरण-पोषण का कार्य किया एवं वह स्वयं 60 से 70 दिनों तक जेल में रहे और उन्हें इलेक्ट्रिक शॉक भी दिया गया, इस घटना का विवरण 'राष्ट्रधर्म पत्रिका' के यातना अंक के द्वितीय संस्करण में उनके चित्र के साथ विशेष रूप से प्रकाशित किया गया।
सन् 1976 में आपातकाल के दौरान जब इन्हें पकड़ा गया इन्हें थाना में 3 घंटे तक लगातार इलेक्ट्रिक शॉक दिया गया। यह शॉक बिना कुछ पूछे ही दिया गया, फिर बाद में जेल में ले जाकर बंद कर दिया गया।ना केस होता था ना अपील, और नाहीं दलील दे सकते थे बस पुलिस पकड़ कर ले जाती थी, जेल में डाल देती थी,कई-कई माह तक जेल में रहना पड़ता था,यह सब होता था ' मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट (मीसा) के तहत। वहीं डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स (1971) डी.आर.आर. के तहत बंदी बनाए जाने पर जेल में पुलिस रिमांड पर कठोर यातनाएं दी जाती थी। इन्हें काफी समय तक जेल में बंद रखा गया और जमानत पर बाहर आए।जेल में रहने पर पुलिस जमकर शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित करती थी, खाने में सुखी रोटी दी जाती थी और दिन भर प्यासा रखा जाता था।
वे सदैव निःस्वार्थ भाव से जीवन भर समाज के कार्य करते रहें। इन्हें जीवनभर राजकीय पदों का आग्रह किया गया परंतु वे उसे अस्वीकार करते रहे वरन अपने सहयोगियों को भी नि:स्वार्थ भाव से सेवा की घुट्टी पिलाकर समाज सेवा का कार्य करने की प्रेरणा देते रहें।
देव पुरुष,राष्ट्रवादी,राष्ट्रप्रेम व्यक्तित्व के श्री चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं व विनम्र
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