सुबह-ए-बनारस का विरोध-प्रदर्शन: देश में मुफ्तखोरी की राजनीति बंद करने की मांग, नहीं तो श्रीलंका जैसे होंगे हालात -
सुबह-ए-बनारस क्लब के अध्यक्ष मुकेश जायसवाल और एवं उपाध्यक्ष अनिल केसरी ने कहा कि केवल शिक्षा, न्याय और इलाज के अलावा जनता को कुछ भी मुफ्त नहीं मिलना चाहिए। मुफ्तखोरी लोगों को कामचोर और देश को कमजोर बनाती है।
सामाजिक संस्था सुबह-ए-बनारस क्लब के बैनर तले सोमवार सुबह मुफ्तखोरी की राजनीति को लेकर मैदागीन चौराहे पर प्रदर्शन विरोध-प्रदर्शन किया गया। सभी ने एक स्वर में कहा कि देश-प्रदेश मे सत्ता पर काबिज होने के लिए जिस प्रकार से आज की राजनीति में वोटरों को लुभावने के लिए लोक-लुभावने वादे किए जा रहे हैं, आने वाले दिनों में आर्थिक दृष्टिकोण से उसके गंभीर परिणाम होंगे।
संस्था के अध्यक्ष मुकेश जायसवाल और एवं उपाध्यक्ष अनिल केसरी ने कहा कि केवल शिक्षा, न्याय और इलाज के अलावा जनता को कुछ भी मुफ्त नहीं मिलना चाहिए। मुफ्तखोरी लोगों को कामचोर और देश को कमजोर बनाती है। सत्ता हथियाने के लिए राजनीतिक दल जिस तरह से लोक-लुभावन योजनाओं की घोषणा करते हैं, उसके कारण न सिर्फ आम आदमी को दुष्परिणाम झेलने पड़ते हैं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था भी चौपट हो जाती है।
आज श्रीलंका में जो कुछ हो रहा है, उसके लिए काफी हद तक ऐसे ही लोक-लुभावन योजनाएं जिम्मेदार हैं। भारत के कुछ राज्य भी श्रीलंका के राह पर चल रहे हैं। समय रहते उन्हें ना रोका गया तो फिर भारत के वह राज्य भी श्रीलंका की तरह आर्थिक तंगी के शिकार हो जाएंगे।
कुछ राज्यों में सब कुछ मुफ्त में बांटने की होड़
अनिल केसरी ने कहा भारत के कुछ राज्यों की सरकार के आंकड़े बता रहे हैं कि तमिलनाडु, पंजाब, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल,और राजस्थान पर ज्यादा कर्ज है। हमें नई रणनीति बनानी चाहिए, क्योंकि अगर इसे रोका नहीं गया तो एक दिन केंद्र पर भारी बोझ आएगा। जिसका नुकसान पूरे देश को होगा। कुछ राज्यों में सब कुछ मुफ्त की रेवीड़यां के तहत बांटने की होड़ मची है।
ऐसे में उन्हें रोका नहीं गया तो ऐसे हालात हो सकते हैं, जैसे श्रीलंका के हो चुके हैं। उत्तराखंड, पंजाब, दिल्ली जैसे अन्य कई राज्यों में जिस प्रकार से बिजली फ्री, पिछला बिल माफ, महिलाओं को हर महीने पेंशन तथा नाना प्रकार के प्रलोभन देने वाले घोषणा की गई है वो आने वाले दिनों में आर्थिक रूप से एक गंभीर चुनौती साबित होगा। जिसका खामियाजा देश की सारी जनता को भुगतना पड़ेगा।
मुफ्त राशन का स्वागत, मगर जांच जरूरी
अंत में सभी वक्ताओं ने सरकार से अपील करते हुए मांग किया कि सरकार द्वारा गरीबों को दिए जाने वाला मुफ्त राशन का निर्णय स्वागत योग्य है। मगर यह जांच का विषय भी है कि मुफ्त में बांटे गए राशन सही हाथ में पहुंच रहा है या लाभान्वित व्यक्ति द्वारा उस राशन का धड़ल्ले के साथ बाजार में खरीद-फरोख्त हो रहा है। साथ ही साथ फ्री में बिजली देने के बजाय अगर महंगी बिजली का रेट कम कर दिया जाए तो उसका सभी वर्गों (मध्यम वर्गीय परिवार) को भी लाभ मिलेगा।
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