इंसानी मस्तिष्क और कंप्यूटर के तालमेल से हो रहा टेक रिवोल्यूल्शनः प्रो. तमम टिल्लो

वाराणसी। इंजीनियरिंग और प्रबंधन की शिक्षा देने वाले पूर्वांचल के अग्रणीय संस्थान अशोका इंस्टीट्यूट आफ टेक्नालाजी एंड मैनेजमेंट में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार “टेक यात्रा-2022” में नई दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ इंस्टीट्यूट आफ इंफार्मेशन टेक्नालाजी (आईआईआईटीडी) में इमेज प्रोसेसिंग के विशेषज्ञ प्रो. तमम टिल्लो ने कहा कि इंसानी दिमाग व कंप्यूटर के बेहतर तालमेल से दुनिया के हर कोने में तकनीक क्रांति हो रही है

इंसानी मस्तिष्क और कंप्यूटर के तालमेल से हो रहा टेक रिवोल्यूल्शनः प्रो. तमम टिल्लो

वाराणसी। इंजीनियरिंग और प्रबंधन की शिक्षा देने वाले पूर्वांचल के अग्रणीय संस्थान अशोका इंस्टीट्यूट आफ टेक्नालाजी एंड मैनेजमेंट में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार “टेक यात्रा-2022” में नई दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ इंस्टीट्यूट आफ इंफार्मेशन टेक्नालाजी (आईआईआईटीडी) में इमेज प्रोसेसिंग के विशेषज्ञ प्रो. तमम टिल्लो ने कहा कि इंसानी दिमाग व कंप्यूटर के बेहतर तालमेल से दुनिया के हर कोने में तकनीक क्रांति हो रही है. कंप्यूटर की भाषा हमारे दिमागी सोच पर निर्भर करती है। यह बात हमारे आईक्यू पर निर्भर करता है कि किसी भी सवाल का उत्तर क्या होना चाहिए। कंप्यूटर की भाषा बौद्धिक क्षमता का ऐसा भंडार है जिसे समझ पाना आसान नहीं है।


प्रो.टिल्लो ने कहा कि दृष्टि पटल एक तरह का संवेदी पर्दा होता है जो आंखों के पृष्ठ भाग में होता है। दृष्टि पटल प्रकाश सुग्राही कोशिकों के जरिये ही प्रकाश तरंगों के संकेतों को मस्तिष्क पर भेजता है और तभी हम किसी भी वस्तु को देखने में सक्षम हो पाते हैं। आंखों के जिरये किसी भी रंग अथवा वस्तु को देख पाना एक जटिल प्रक्रिया है। आंखों की कार्निया पर किसी भी वस्तु से आने वाली अधिसंख्य प्रकाश की किरणों का अपवर्तन होता है। किसी भी वस्तु से आने वाली प्रकाश की किरणें लेंस से अपवर्तन के बाद उसकी प्रतिबिंव रेटिना पर बनाती हैं। रेटिना पर प्रतिविंब बनते ही इसमें उपस्थित प्रकाश सुग्राही कोशिकाएं सक्रिय हो जाती हैं। वो एक तरह से विद्युत सिग्नल पैदा करती हैं। इन्हीं विद्युत संकेतों के जरिये सिग्नल दिमाग तक पहुंचते हैं। मस्तिष्क इन सिग्नलों की व्याख्या करता है और सूचनाओं को संसाधित करता है जिसकी वजह से हम किसी भी वस्तु को जैसा है वैसा देख पाते हैं। दरअसल रेटिनिल कोशिकाएं दृश्य संवेदन को इलेक्ट्रिक सेवंदन में परिवर्तित कर उन्हें आप्टिक नर्व के जरिये संचारित करती हैं।
हमारी आंखें रंगों का भेद कैसे करती हैं इसका विष्लेषण करते हुए प्रो.टिल्लो ने यह भी कहा कि किसी भी इंसान को कितनी देर तक किसी भी स्क्रीन पर रहना चाहिए यह उसकी दिमागी क्षमता पर निर्भर करता है। इतना जरूर है कि हर इलेक्ट्रानिक गैजेट्स से रेडिएशन होता है, जो शरीर और दिमाग दोनों को नुकसान पहुंचाता है।
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कालेज आफ इंजीनियरिंग पुणे के निदेशक प्रो.मुकुल सुतने ने कहा कि हर आदमी शिक्षक होता है। हर किसी से कुछ न कुछ सीखना चाहिए। जीवन के हर पर मोड़ अभ्यास करिए, लेकिन उसमें इनोवेशन जरूर होना चाहिए। अगर कोई समस्या आती है तो उसी में से उसका हल भी निकलाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इंसान चाहे जितना भी पढ़ ले, उसे अपने पारंपरिक ज्ञान से जुदा नहीं होना चाहिए। जिन स्थान से वो बाहर निकलता है उसके विकास की जिम्मेदारी भी उसी की बनती है।
प्रो.मुकुल ने कहा कि शोध करने से पहले हर व्यक्ति खुद से यह सवाल जरूर पूछना चाहिए कि क्या, क्यों, किसलिए और किसके लिए शोध कर रहे हैं। कुछ लोग थोड़ पढ़कर काम करना छोड़ देते हैं,  और थोड़ा पढ़कर गांव छोड़ देते है और कुछ ज्यादा पढ़कर देश छोड़ देते हैं। इंसान की यह धारण गलत है। आदमी को खेती के रास्ते से होते हुए विकास के रास्ते पर बढ़ना चाहिए।
इनोवेशन के उपयोगिता की चर्चा करते हुए कहा कि प्रयोगशालाओं में किए गए इनोवेशन की तब तक कोई वैल्यू नहीं है जब तक उसे बाजार में अहमियत नहीं मिलती है। कोई भी इनोवेशन तभी उपयोगी होता है जब बाजार में उसका महत्व और डिमांड होता है। शोध ही इनोवेशन है, किसी भी प्रोडक्ट का, प्रोसेस का, सिस्टम का, सेवाओं का और बाजार का। हर इंसान अपनी खासियत पहचानते हुए उसी क्षेत्र में इनोवेशन करना चाहिए।
 
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मुजफ्फरनगर के एसडी कालेज आफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नालाजी के निदेशक प्रो.एसएन चौहान ने तकनीक प्रबंधन एवं पर्यावरण पर टीचर्स  और स्टूडेंट्स को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय दृष्टिकोण हमारी सनातन मान्यता है। उसमें मानव कल्याण निहित है। चाहे तकनीकी विकास हो, प्रबंधन की योजनाएं हों अथवा उसके दोहन व संरक्षण का तरीका हो, सभी भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुरूप होना चाहिए। तभी दीर्घजीवी विकास की परिकल्पना की जा सकती है। भारतीय सनातन परंपरा में पंचभूतों को सर्वाधिक प्रधानता दी गई है, जिसमें तकनीकी प्रबंधन एवं पर्यावरण संबंधी किसी तरह की क्रिया के जरिये विचलन नहीं आना चाहिए। साथ ही हमें अपने विकास की जो नीति और माडल बनाना है उसे स्वदेशी बनाना चाहिए। उधार की तकनीक अथवा प्रबंधकीय व्यवस्था से हम भारत के संसाधनों का उपयुक्त दोहन नहीं कर सकते हैं।


प्रो.चौहान ने कहा कि आबादी के मामले में दुनिया में दूसरा स्थान रखने वाला भारत सबसे युवा देश है। फिर भी गरीबी हमारी सबसे बड़ी दुश्मन है। इसकी बड़ी वजह यह है कि हम अपने संसाधनों का उपयुक्त उपयोग और उपभोग नहीं कर पा रहे हैं। गरीबी मिटाने के लिए हमें अपनी तकनीक, प्रबंधकीय व्यवस्था, पर्यावरण पक्षों को अपनी विचार शैली एवं सनातन परंपरा के परिप्रेक्ष में ढालना चाहिए।


मुजफ्फरनगर के एसडी कालेज आफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नालाजी के डा.ए.कीर्तिवर्धन ने कहा कि तकनीक का मकसद अनावरण होता है। समर्पण की भावना किसी भी कवि का दृष्टिकोण होता है। जब हम विज्ञान को संस्कार, सभ्यता और संस्कृति से जोड़ते हैं तो विद्वान बनते हैं। ऋगुवेद में प्रकृति को भगवान का दर्जा दिया गया है। भगवान शब्द का संधि विच्छेद करें तो अर्थ निकलेगा भू, गगन, वायु, अग्नि और नीर। इसमें पांचों तत्वों की उपासना और संरक्षण का महत्व बताया गया है। तकनीक और पंचभूत तत्व मिलकर ही विकास का नया माडल तैयार करते हैं। सनातन संस्कृति में इन्हीं पांचो तत्वों को मिलाकर पूजा और अर्चना करते हुए भगवान माना गया है। ऐसे में हर व्यक्ति का लक्ष्य होना चाहिए कि वो जीवन कुछ पेड़ जरूर लगाए।


सेमिनार में अशोका इंस्टीट्यूट के चेयरमैन अंकित मौर्य और वाइस चेयरमैन अमित मौर्य ने देश-विदेश से आए इंफार्मेशन टेक्नालाजी के विशेषज्ञों का स्वागत किया। निदेशक डा.सारिका श्रीवास्तव ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन एसोसिटेएट प्रोफेसर डा.वंदना दुबे, डा.प्रीति सिंह, ई0 अरविन्द कुमार, असिस्टेंट प्रोफेसर पल्लवी सिंह, शर्मीला सिंह और अनुजा सिंह ने किया। इस अवसर पर अशोका इंस्टीट्यूट के फार्मेसी विभाग के प्रिंसिपल डा.बृजेश सिंह, अशोका स्कूल आफ बिजनेस के प्रिंसिपल सीपी मल्ल, डीन एसएस कुशवाहा, रजिस्ट्रार असीम देव, एसोसिएट प्रोफेसर राजेंद्र तिवारी, धर्मेंद्र दुबे, अर्जुन कुमार, राजीव मिश्रा, राजीव यादव, अभिषेक गुप्ता, डा.सौम्या श्रीवास्तव, ओपी शर्मा, ई0 सोमेंन्द्र बनर्जी समेत बड़ी संख्या में शिक्षक एवं स्टूडेंट्स मौजूद रहे।

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