लगभग 8 सौ वर्ष पुरानी बघेल वंश की परंपरा को कसौटा (शंकरगढ) के 34 वें राजा ने आज भी बरकरार रखा
रिपोर्ट लगभग 8 सौ वर्ष पुरानी बघेल वंश की परंपरा को कसौटा (शंकरगढ) के 34 वें राजा ने आज भी बरकरार रखा
कसौटा (शंकरगढ) राजघराने के 34 वें राजा महाराव राजा महेंद्र प्रताप सिंह का उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश से आए हजारों लोंगों ने नजराना पेश किया
रीवा रियासत के बाँटवारेदार शंकरगढ राजपरिवार देश का एक मात्र ऐसा राजपरिवार है जिसका आज भी जनता द्वारा दशहरे के दिन नजराना पेश किया जाता है
बघेल वंश के महाराजा ब्याघ्रदेव के पांचवें पुत्र राजा कंधरदेव को कसौटा (शंकरगढ)की विरासत मिली थी,जो 34 पीढ़ी पहले यूपी एमपी के टोंस नदी के किनारे देवरा गांव में अपने राज्य की स्थापना किया था
शंकरगढ राजा घराने के 13 वें राजा शंकर सिंह ने शंकरगढ को अपना राज्य बनाकर हर जाति एवं धर्म के लोगों को बसाया
बघेल वंश का इतिहास 8 सौ वर्ष से भी पुराना है,शंकरगढ राजघराने का 1857 के संग्राम में बहुत बड़ा योगदान रहा
प्रयागराज ( शंकरगढ ) राजघराने की 34 वीं पीढ़ी से चली आ रही दशहरे के दिन नज़राने की परंपरा आज भी बरकरार है,क्षेत्र की जनता आज भी अपने राजा के दर्शन के लिए सैकड़ों की संख्या में इकठ्ठा होकर अपने राजा के दर्शन के लिए आतुर रहती है। पुरानी परंपरा के अनुसार लोगों की मान्यता है कि दशहरे के दिन नीलकंठ या राजा का दर्शन करना शुभ माना जाता है,इसलिए जनता अपने राजा के दर्शन के लिए उमड़ पड़ती है। इसी दौराना राजा अपने राजसी लिबास में जनता को दर्शन देते है,शंकरगढ और आसपास के सैकड़ों गांव से की जनता इकठ्ठा होकर अपने चहते राजा को दर्शन के साथ साथ नज़राना पेश करते हैं।
परम्परा के अनुसार कसौटा ( शंकरगढ ) की जनता नज़राने के रूप में 11 रुपए 21 या 51 रुपए का नज़राना पेशकर अपने राजा से आशीर्वाद लेते हैं। आज भी परंपरा के अनुसार राजघराने से पूरे क्षेत्र में निमंत्रण दिया जाता है, कई पीढ़ियों से ये निमंत्रण आज वितरित किया जाता है, पहले शंकरगढ राजघराने में 365 गांव हुआ करता था जो उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के कई गांव थे,हर जाति और धर्म के लोग इकठ्ठा होकर अपने राजा के दर्शन करते हैं। इस दिन पूरे राजभवन को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। दशहरे के दिन से सैकड़ों वर्षो से तीन दिन के मेला राजभवन परिसर में लगता है,जहां क्षेत्र की हजारों की संख्या में महिला पुरुष और बच्चे मेले का आनंद उठाते हैं। नवरात्रि के दिन से सैकड़ों वर्ष पुरानी ऐतिहासिक रामलीला का भी राजभवन परिसर में मंचन होता चला आ रहा है।
34 वीं पीढ़ी पहले रीवा रियासत के महाराजा व्याघ्रदेव के पांचवे पुत्र राजा कंधरदेव को बंटवारे में कसौटा राज्य मिला था, राजा कंधरदेव रीवा से चलकर उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के बॉर्डर पर टोंस नदी के किनारे देवरा गांव में अपने राज्य की स्थापना किया था जो कसौटा राज्य के नाम से जाना जाता था। लेकिन इसी राजघराने के 13 वें राजा शंकर सिंह ने शंकरगढ को अपना राज्य बनाया तब से कसौटा राज्य बन गया जो बाद में शंकरगढ के नाम से जाना जाने लगा। इस समय 34 वीं पीढ़ी के राजा महेंद्र प्रताप सिंह वर्तमान में राजा हैं,वहीं इनके पुत्र शिवेंद्र प्रताप सिंह युवराज तो वहीं इनके पोते व्यम्बकेश्वर प्रताप सिंह भंवर साहब के नाम से जाने जाते हैं।
शंकरगढ के राजा बघेल वंश के राजा हैं,इस दिन परंपरा के अनुसार पूरे कसौटा क्षेत्र के इनका बघेल परिवार इकठ्ठा होता है जो परंपरा के अनुसार पूरा बघेल परिवार एक साथ भोजन करता है,ये परम्परा सिर्फ दशहरे के दिन ही होता है जिसमे पूरा बघेल खानदान इकठ्ठा होकर एक दूसरे के कुशलक्षेम जनता है। राजा अपने परिवार से मिलते है और इसी दिन पूरा बघेल खानदान इकठ्ठा होता है। ये भी बता देना चाहता हूं कि पूरे देश मे जहां भी बघेल राजपूत मिलेगें वो रीवा राजघराने या शंकरगढ राजघराने से ताल्लुक रखता है क्योकि यही एक बघेल खानदान है जो पूरे देश मे पाए जाते हैं।
कसौटा (शंकरगढ) राजघराने इतिहास बहुत पुराना है,1857 के संग्राम में शंकरगढ (कसौटा) राजघराने का बहुत बड़ा योगदान रहा,राजपरिवार द्वारा यहां की जनता के लिए कई शिक्षण संस्थाएं भी खोली गई है,जिसमे राजा कमलाकर इंटर कॉलेज,राजा कमलाकर संस्कृत पाठशाला,राजा कमलाकर डिग्री कॉलेज,रानी देवयानी पब्लिक स्कूल आदि है, इस बार वर्तमान राजा महेंद्र प्रताप सिंह द्वारा वादा किया गया कि अगर मेरा स्वास्थ्य ठीक रहा तो जल्द ही मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना भी होगी।
आपको बता दें दशहरे के दिन सुबह से ही राजभवन में पूजा अर्चना शुरू हो जाती है, दोपहर में परंपरागत तरीके से शस्त्र एवं राजगद्दी पूजन होता है,राजपुरोहितों द्वारा मंत्रोच्चार से पूरा राजभवन गूंज उठता है, इसी दिन सैकड़ों वर्ष पुराने अस्त्र शस्त्रों को जनता के देखने के लिए सजाया जाता है। जनता इन पुराने अस्त्र शस्त्र को देखकर भावविभोर हो जाती है। दशहरे के दिन से लगातार तीन दिनों तक जनता के लिए राजभवन खुला रहता है,क्षेत्र की जनता का तांता लगा रहता है।
जानकारों की माने तो नजराने की ये परंपरा अब पूरे देश मे सिर्फ शंकरगढ राजघराने में देखने को मिलती है,बाकी सब स्टेटों में ये परम्परा समाप्त हो गई, राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि इस परम्परा को मैं भी बंद कर देता लेकिन क्षेत्र की जनता ने इस परंपरा को बंद करने के लिए मना कर दिया,जनता का कहना है कि इस दिन हम सब लोग राजभवन में इकठ्ठा होकर अपने राजा के दर्शन के साथ साथ एक दूसरे से मुलाकात भी कर लेते हैं,बहुत लोग जो देश के कोने कोने में जाकर बस गए है लेकिन इस दिन आकर राजा के दर्शन के साथ एक दूसरे से मिल लेते हैं। इसी बहाने अपने राजा का दर्शन पाकर लोग भावविभोर हो जाते हैं।
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