शंकरगढ राजघराने की 34 वीं पीढ़ी की दशहरे पर नज़राने की परंपरा आज भी बरक़रार

पूरे देश मे शंकरगढ एक ऐसा राजघराना है जिसमे 34 पीढ़ी से चली आ रही दशहरे पर नज़राने एवं राजगद्दी तथा शस्त्र पूजन की परंपरा आज भी बरकरार है। आपको बता दे उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जनपद के यमुनानगर के उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित शंकरगढ राजघराना जो पहले कसौटा राजघराने के नाम से जाना जाता था,ये बहुत पुराना राजघरना माना जाता है। शंकरगढ राजघरना जोकि रीवा रियासत का एक परिवार है।

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एंकर--- पूरे देश मे शंकरगढ एक ऐसा राजघराना है जिसमे 34 पीढ़ी से चली आ रही दशहरे पर नज़राने एवं राजगद्दी तथा शस्त्र पूजन की परंपरा आज भी बरकरार है।

आपको बता दे उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जनपद के यमुनानगर के उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित शंकरगढ राजघराना जो पहले कसौटा राजघराने के नाम से जाना जाता था,ये बहुत पुराना राजघरना माना जाता है। शंकरगढ राजघरना जोकि रीवा रियासत का एक परिवार है। ये राजघरना महाराजा व्याघ्रदेव के वंशज है। जिन्हें बघेल राजा कहा जाता है,महाराजा व्याघ्रदेव नाम से राजपूतों का बघेल खानदान कहा जाता है।  महाराजा व्याघ्रदेव गुजरात से चलकर मध्यप्रदेश के रीवा में आकर बस गए। जो मध्यप्रदेश राज्य बनने से पहले विंध्य प्रदेश के नाम से जाना जाता था। महाराजा व्याघ्रदेव के पांच पुत्र हुए जिसमे सबसे छोटे पुत्र कंधरदेव को कसौटा का राजा बनाया गया जो अब शंकरगढ के नाम से जाना जाता है,इसी राजघराने के 34 वें पीढ़ी राजा महेंद्र प्रताप सिंह शंकरगढ की जनता के स्नेह एवं प्यार को देखते हुए अपने पूर्वजों की इस परंपरा को बरकरार रखा है।

आपको बता दे पूरे देश मे राजतंत्र समाप्त हो गया जिसके साथ सभी परंपराएं भी समाप्त हो गई,लेकिन 34 पीढ़ी से दशहरे पर होने वाली परपंरा आज भी कायम है। परंपरा के अनुसार दशहरे के दिन सुबह राजघराने के प्रतीक चिन्ह झंडे की पूजा होती है,इसके बाद राजगद्दी एवं शस्त्र पूजन होता है,इसके उपरांत रात्रि को राजा अपने राजसी पहनावे में आकर जनता के बीच रूबरू होकर मिलते है,परंपरा के अनुसार 34 वें राजा महेंद्र प्रताप सिंह 365 गांव से आए हुए जनता को संबोधित करते हैं। पूरे कसौटा क्षेत्र की जनता आज भी इनको अपना राजा मानते हुए पुराने परम्परा के अनुसार नज़राना पेश करती है। नज़राने के तौर पर यहां की जनता 11 रुपए या 21 रुपए नज़राने के तौर पर पेश करती,नजराना ग्रहण करने के बाद राजा द्वारा अपने हाथों से एक पान का बीड़ा दिया जाता है।


एक बात और बता देना चाहता हूँ कि  इस क्षेत्र की जनता के मांग पर ही ये परम्परा बरकरार है क्योंकि इस क्षेत्र की जनता आज भी यहाँ के राजा को अपना राजा मानती है, यह शंकरगढ राजघरना उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश की सीमा पर बसा है,इसलिए यूपी के प्रयागराज एवं एमपी के रीवा जिले के ग्रामीण क्षेत्र की हजारों की संख्या में जनता अपने राजा के दर्शन के लिए उमड़ पड़ती है। एक बात और बता देना चाहता हूं कि दशहरे के दिन सैकड़ो साल से राजभवन परिसर में 3 दिनों का ऐतिहासिक मेला भी लगता है जिसमे सैकड़ों गांव एवं शहरी क्षेत्र के लोग आकर मेले का लुत्फ उठाते है। जिसमे दूर दराज के व्यापारी आकर मेले में तरह तरह की दुकाने लगाते है। बच्चों के एवं महिलाओं के लिए विभिन्न प्रकार के झूले आकर्षक का केंद्र बना होता है।

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