उत्तर प्रदेश के अफसरों में शीर्ष अदालत के प्रति जरा भी सम्मान नहीं: सुप्रीम कोर्ट! जानें पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के अफसरों के प्रति गहरी नाराजगी व्यक्त की है। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि, देश की सर्वोच्च अदालत के प्रति उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों के मन में जरा भी सम्मान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद की सजा काट रहे कुछ कैदियों की सजा कम करने पर उसके निर्देशों के अनुपालन में लगभग एक साल की देरी पर गहरी नाराजगी व्यक्त करते हुए यह टिप्पणी की।

उत्तर प्रदेश के अफसरों में शीर्ष अदालत के प्रति जरा भी सम्मान नहीं: सुप्रीम कोर्ट! जानें पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के अफसरों के प्रति गहरी नाराजगी व्यक्त की है। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि, देश की सर्वोच्च अदालत के प्रति उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों के मन में जरा भी सम्मान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद की सजा काट रहे कुछ कैदियों की सजा कम करने पर उसके निर्देशों के अनुपालन में लगभग एक साल की देरी पर गहरी नाराजगी व्यक्त करते हुए यह टिप्पणी की।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने बुधवार को निर्देश दिया कि यदि अधिकारी याचिकाकर्ताओं की समयपूर्व रिहाई के सभी लंबित आवेदनों पर चार सप्ताह के भीतर निर्णय नहीं लेते हैं, तो अगली तारीख पर राज्य गृह विभाग के प्रमुख सचिव अदालत को सूचित करेंगे। बता दें कि अगली सुनवाई की तारीख 29 अगस्त है। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने पीठ से कहा कि, सिफारिश करने के बाद राज्यपाल को सजा माफ करने पर अंतिम फैसला लेना होगा। कोर्ट द्वारा राज्यपाल को समय सीमा देना उचित नहीं होगा। इस पर पीठ ने कहा कि, कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। ऐसे लोग हैं जो लगभग 30 वर्षों से परेशान हैं। पिछले साल 16 मई को हमने 3 महीने के अंदर फैसला लेने का निर्देश दिया था। हालाँकि, प्रशासन को अभी भी कई कैदियों की याचिकाओं पर निर्णय लेना बाकी है। बरेली जेल में बंद याचिकाकर्ता कैदी 14 साल से अधिक की वास्तविक सजा बिना पैरोल के पूरी कर चुके थे।

उठाने होंगे सख्त कदम 

पीठ ने अतिरिक्त महाधिवक्ता अर्धेन्दुमौली कुमार प्रसाद से कहा, आपके राज्य में यही हो रहा है। आपके अधिकारी जितना अनादर कर रहे है, हमें लगता है कि अब कुछ सख्त कदम उठाने होंगे। पिछले साल अदालत में पेश हुए 42 दोषियों में से कई को उच्च न्यायालय द्वारा दया याचिका लंबित रहने तक रिहा कर दिया गया या बरी कर दिया गया था। वहीं, सात आवेदन अभी भी लंबित हैं।

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