होलिका दहन में किन लकडिया का करे इस्तेमाल और किनका भूल कर भी न करे उपयोग
इन्ही में से एक नियम होलिका दहन के लिए उपयोग होने वाली लकड़ियों से भी सम्बंधित है।
होली का त्यौहार एक ऐसा त्यौहार है जिसकी मस्ती हर एक के सर चढ़ कर बोलती है क्या बच्चा क्या बूढ़ा सभी रंगो के इस त्यौहार में खो से जाते हैं। होली के त्यौहार से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है। इस साल होलिका दहन मंगलवार 7 मार्च को किया जाएगा। लेकिन होलिका दहन से जुड़े कुछ ऐसे भी नियम है जिनका पालन करना अति आवश्यक है। इन्ही में से एक नियम होलिका दहन के लिए उपयोग होने वाली लकड़ियों से भी सम्बंधित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होलिका दहन के लिए कुछ लकड़ियों का उपयोग करना अशुभ माना गया है क्योंकि शास्त्रों के अनुसार कुछ पेड़ राहु-केतु से संबंधित होते हैं और बुराई का प्रतीक माने गए हैं। ऐसे में होलिका दहन के लिए उपयोग की जाने वाली लकड़ियों से जुड़े नियमो को जानना बेहद जरूरी है।
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होलिका दहन के लिए आम की लकड़ी का भूलकर भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, ऐसा करना अशुभ माना गया है।
- इसके अलावा होलिका दहन के लिए वट के पेड़ की लकड़ी जलाना भी अशुभ माना गया है। इसलिए वट के पेड़ की लकड़ी भूलकर भी ना लाएं।
- होलिका दहन के लिए एरंड और गूलर के पेड़ की लकड़ियां उपयोग की जाती हैं। इनका उपयोग करना शुभ माना गया है क्योंकि जब एरंड और गूलर के पत्ते झड़ने लगते हैं और उन्हें ना जलाया जाए तो इनमें कीड़ा लग जाता है।
- मान्यताओं के अनुसार एरंड और गूलर की लकड़ी की यह खासियत है कि इन्हें जलाने से हवा शुद्ध होती है। फाल्गुन के महीने में मच्छर और बैक्टीरिया पनपते हैं, ऐसे में एरंड और गूलर की लकड़ी जलाने से मच्छर और बैक्टीरिया खत्म होते हैं और हवा भी शुद्ध होती है।
- होलिका दहन के लिए लकड़ियों के साथ ही गाय के गोबर से बने छोटे-छोटे उपले भी उपयोग किए जाते हैं जिन्हें भल्ले कहा जाता है। इनका उपयोग करना शुभ माना गया है।
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