राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस (एक जुलाई) पर विशेषडॉक्टर होने के साथ-साथ माँ की जिम्मेदारियों को भी बखूबी निभा रही हैं...

वाराणसी, 30 जून 2024 । चिकित्सा सेवा ही एक ऐसी सेवा है, जिसमें चिकित्सक जितना अनुभवी हो, उतना ही वह दक्ष और कार्यकुशल माना जाता है। अपनी इसी आचरण और सूझबूझ से वह न जाने कितने मरीजों की जान बचाता है, उन्हें स्वस्थ और खुशहाल जीवन प्रदान करता है। इसलिए डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया गया है।

राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस (एक जुलाई) पर विशेषडॉक्टर होने के साथ-साथ माँ की जिम्मेदारियों को भी बखूबी निभा रही हैं...
राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस (एक जुलाई) पर विशेषडॉक्टर होने के साथ-साथ माँ की जिम्मेदारियों को भी बखूबी निभा रही हैं...
वाराणसी, 30 जून 2024 । 
चिकित्सा सेवा ही एक ऐसी सेवा है, जिसमें चिकित्सक जितना अनुभवी हो, उतना ही वह दक्ष और कार्यकुशल माना जाता है। अपनी इसी आचरण और सूझबूझ से वह न जाने कितने मरीजों की जान बचाता है, उन्हें स्वस्थ और खुशहाल जीवन प्रदान करता है। इसलिए डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया गया है। जिस तरह मरीजों की सेवा में चिकित्सक कोई कसर नहीं छोड़ते, उसी तरह अपने परिवार के साथ समय बिताने और उनकी देखभाल करने की जिम्मेदारियों को भी बखूबी निभा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग में भी बहुत से ऐसे चिकित्सक हैं जो अपनी ड्यूटी को ईमानदारी से निभा रहे हैं। साथ ही साथ अपने परिवार के साथ हेल्दी टाइम भी बिता रहे हैं।
ड्यूटी भी करती हूँ और बच्ची को भी पढ़ाती हूँ... 

– शहरी सीएचसी चौकाघाट की अधीक्षक डॉ फाल्गुनी गुप्ता ने कहा – “वर्ष 2012 में एमबीबीएस पूरा करने के दो साल बाद लोक सेवा आयोग (पीएमएस) में चयन होने पर मैंने चिकित्सा सेवा क्षेत्र में कदम रखा। पेशे से जनरल फिजीशियन हूँ। पीएमएस के अंतर्गत मेरी पहली नियुक्ति अमेठी के सीएचसी भदर में महिला चिकित्सा अधिकारी के रूप में हुई। चार साल तक वहाँ मरीजों की सेवा करने के बाद मेरी अगली नियुक्ति वाराणसी के शहरी पीएचसी लल्लापुरा में प्रभारी चिकित्सा अधिकारी (एमओआईसी) के रूप में हुई। वर्ष 2022 से मैं सीएचसी चौकाघाट के अधीक्षक पद पर तैनात हूँ और ईमानदारी से अपनी सभी ड्यूटी को निभा रही हूँ।“ उन्होंने आगे कहा – “मेरा पूरा परिवार चिकित्सा क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे चुका है और दे रहा है। तो बचपन से मुझे भी डॉक्टर बनने की चाह थी। समाज में रहकर लोगों की सेवा करने से मुझे बेहद खुशी मिलती है।“ वह बताती हैं कि उनकी चार साल की एक बच्ची है। ड्यूटी खत्म होते ही वह उसके साथ ही पूरा समय बिताती हैं और सुबह शाम पढ़ाती भी हैं। चिकित्सा क्षेत्र में बेहतर सेवा प्रदान करने के किए उन्हें स्वास्थ्य विभाग और विभिन्न संस्थाओं से प्रशस्ति पत्र मिल चुके हैं। 

मरीजों की सेवा करना सौभाग्य की बात है... 
- पीएचसी सेवापुरी पर तैनात महिला चिकित्सा अधिकारी डॉ शालिनी  शर्मा ने कहा – “लोक सेवा आयोग से चयन होने के बाद मेरी पहली नियुक्ति बड़ागांव के प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र दानुपुर में चिकित्साधिकारी के रूप में हुई। उसके बाद नौ माह तक जिला महिला चिकित्सालय कबीरचौरा वाराणसी औऱ कुछ साल  तक सीएचसी चौकाघाट पर सेवा देनें का अवसर मिला। अराजीलाइन के पीएचसी जगरदेवपुर औऱ मेडिकल केयर यूनिट कचहरी मे भी सेवा देना का अवसर मिला। वर्ष 2020 से पीएचसी सेवापुरी में मरीजों की सेवा कर रही हूं।“ उन्होंने आगे कहा – “मेरे बड़े भैया स्व. डॉ राजेश शर्मा से प्रभावित होकर मैंने भी डॉक्टर बनने का फैसला लिया। मेरा मानना है कि मरीजों की सेवा करने से बढ़कर कोई और सेवा धर्म नहीं हो सकता है। मैंने अपनी नौकरी अधिकतर ग्रामीण क्षेत्र में ही की है और मुझे अच्छा लगता है कि मैं गरीब और असहाय मरीजों के स्वास्थ्य का ख्याल रख पा रही हूँ। वह बताती हैं कि अधिकतर महिलाओं को ही बीमारियों का सामना करना पड़ता है। झिझक के कारण वह अपनी समस्या को किसी और के सामने नहीं रख पाती हैं। ऐसे में मैं अपने आपको बहुत ही सौभाग्यशाली मानती हूँ। ड्यूटी पूरी करने के बाद वह अपना पूरा समय परिवार के साथ बिताती हैं। दो बच्चों और बुजुर्ग सास ससुर की देखभाल करने में कोई कसर नहीं छोड़ती हैं। उन्होंने कहा – “घर हो या अस्पताल , मैं अपनी जिम्मेदारियों को पूरी ईमानदारी औऱ ऊर्जा के साथ निभाती  हूँ। इसी से मुझे जीवन जीने की प्रेरणा मिलती हैं।“
मरीजों के साथ कोई भेदभाव नहीं, उपचार ही प्राथमिकता… 
- शहरी सीएचसी दुर्गाकुंड की अधीक्षक डॉ सारिका राय ने कहा – “एमबीबीएस और स्त्री रोग विशेषज्ञ की पढ़ाई पूरी करने के बाद वर्ष 2007 में लोक सेवा आयोग में चयन हुआ। इससे पहले मैं निजी चिकित्सालय में एक साल कार्य किया। एनएचएम के अंतर्गत वर्ष 2006 में बजरडीहा स्वास्थ्य केंद्र में संविदा पर तैनात रहकर मरीजों की सेवा की। फिर लोक सेवा आयोग के अंतर्गत मेरी पहली नियुक्ति साल 2007 में अराजीललाइन सीएचसी पर हुई। तब सब कुछ नया था और आशाओं की भी भर्ती हो रही थी। मरीजों और प्रसव की संख्या बहुत कम थी। लेकिन सभी के प्रयास से क्षेत्रीय लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में जागरूक किया गया, जिसके बाद मरीजों के साथ साथ प्रसव की भी संख्या बढ़ने लगी। साल 2008 में दुर्गाकुंड स्वास्थ्य केंद्र का प्रभारी बनाया गया, तब यह मैटरनिटी सेंटर था। इसके बाद धीरे – धीरे मरीजों की संख्या बढ़ती गईं तो सुविधाएं भी बढ़ाई गईं। अब यह सेंटर प्रथम संदर्भन केंद्र (एफ़आरयू) बन चुका है, जहां प्रसव के साथ सर्जरी की सेवाएं दी जा रही हैं। वह बताती हैं कि अब तक वह 500 से ज्यादा सिजेरियन प्रसव और 10 हजार से अधिक नसबंदी कर चुकी हैं। इसके लिए उन्हें स्वास्थ्य विभाग की ओर कई बार प्रशस्ति पत्र मिल चुका है। उन्होंने आगे कहा – “मैं अपना कार्य पूरी ईमानदारी से करती हैं और मरीजों के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करती हूँ। समाज में हर तबके के मरीज का उपचार प्राथमिकता के आधार पर करती हूँ। उपचार करने से अधिक मैं स्वास्थ्य शिक्षा जागरूकता और परामर्श पर देती हूँ, जिससे मरीज और उनके परिवार को बीमारी या समस्या का ज्ञान हो सके।“ वह बताती हैं - परिवार में सभी लोग चिकित्सा क्षेत्र में हैं तो मेरा लक्ष्य भी डॉक्टर बनना था। मेरा एक बेटा है जो दसवीं में पढ़ रहा है। उसे स्वतंत्र सोच के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती हूँ।

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