होमी भाभा कैंसर अस्पताल में 18 महीने में हुए 56 बोन मैरो ट्रांसप्लांट

वाराणसी,29.09.2023- लहरतारा स्थित होमी भाभा कैंसर अस्पताल में 18 महीने में 56 बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) किया गया है। ट्रांसप्लांट के बाद से लगभग सभी मरीजों की स्थिति बेहतर है और इसमें से कुछ मरीज तो पूरी तरह ठीक भी हो चुके हैं। खून के कैंसर से जूझने वाले मरीजों के लिए ट्रांसप्लांट एक कारगर इलाज है, जिसके कुशल प्रबंधन के लिए न केवल एक बेहतर टीम, बल्कि अत्याधुनिक तकनीक की भी जरूरत पड़ती है, जो होमी भाभा कैंसर अस्पताल में उपलब्ध है। यहां न केवल इलाज के सभी संसाधन उपलब्ध है, बल्कि अन्य अस्पतालों की तुलना में यहां बी.एम.टी. पर आने वाला खर्च भी कम है।

होमी भाभा कैंसर अस्पताल में 18 महीने में हुए 56 बोन मैरो ट्रांसप्लांट

होमी भाभा कैंसर अस्पताल में 18 महीने में हुए 56 बोन मैरो ट्रांसप्लांट


वाराणसी,29.09.2023- लहरतारा स्थित होमी भाभा कैंसर अस्पताल में 18 महीने में 56 बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) किया गया है। ट्रांसप्लांट के बाद से लगभग सभी मरीजों की स्थिति बेहतर है और इसमें से कुछ मरीज तो पूरी तरह ठीक भी हो चुके हैं। खून के कैंसर से जूझने वाले मरीजों के लिए ट्रांसप्लांट एक कारगर इलाज है, जिसके कुशल प्रबंधन के लिए न केवल एक बेहतर टीम, बल्कि अत्याधुनिक तकनीक की भी जरूरत पड़ती है, जो होमी भाभा कैंसर अस्पताल में उपलब्ध है। यहां न केवल इलाज के सभी संसाधन उपलब्ध है, बल्कि अन्य अस्पतालों की तुलना में यहां बी.एम.टी. पर आने वाला खर्च भी कम है। 


मल्टीपल माइलोमा, लिंफोमा, अक्यूट ल्यूकेमिया और खून के ऐसे कैंसर जो एक बार ठीक होने के बाद फिर से वापस आ जाए, ऐसे मरीजों को बी.ए.म.टी. की जरूरत पड़ती है। होमी भाभा कैंसर अस्पताल के  बीएमटी यूनिट में कार्यरत डॉ. अनंत गोकर्ण और डॉ. सुमित मिर्घ ने बताया कि होमी भाभा कैंसर अस्पताल में 2019 में बीएमटी की शुरुआत हुई थी।

हालांकि 2020 में कोविड के कारण कुछ समय के लिए इसे रोक दिया गया था। दिसंबर 2021 से हम लगातार अस्पताल में बी.एम.टी. कर रहे हैं और अब तक 56 बीएमटी किया जा चुका है। इसमें 52 ऑटोलोगस ट्रांसप्लांट, जबकि 4 एलोजेनिक ट्रांसप्लांट शामिल है। अगर मरीज की बात करे तो ज्यादातर मरीज 18-50 साल के बीच हैं। बीएमटी के लिए अत्याधुनिक तकनीक के साथ ही एक बहुत बड़ी टीम की जरूरत होती है, जिसमें बीएमटी करने वाले डॉक्टर, माइक्रोबायोलॉजी, ट्रांफ्यूजन मेडिसिन, हेमेटोपैथोलॉजी, आईसीयू स्टाफ इत्यादि शामिल होते हैं। हमारे यहां हुए अब तक सभी ट्रांसप्लांट में से 53 मरीज एकदम बेहतर स्थिति में हैं। ट्रांसप्लांट के बाद अगले 100 दिन मरीजों के लिए बेहद संवेदनशील होते हैं।अक्सर इसी अवधि में मरीज की स्थिति बिगड़ जाती है और कई बार उनकी मौत भी हो जाती है, हालांकि हमारे यहां डे हंड्रेड मोर्टेलिटी यानी ट्रांसप्लांट के अगले 100 दिन में होने वाली मौत शून्य है। 
एक तिहाई खर्चः डॉ. मिर्घ ने बताया कि बीएमटी एक खर्चीला इलाज है। हालांकि होमी भाभा कैंसर अस्पताल में बाकि अस्पतालों की तुलना में लगने वाला खर्च लगभग एक तिहाई ही होता है।अस्पताल आने वाले ज्यादातर मरीज आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं, ऐसे मरीजों के बीएमटी में लगने वाला खर्च का भुगतान अस्पताल द्वारा एनजीओ या सरकार द्वारा चलाए जा रहे अलग-अलग योजनाओं के तहत कराया जाता है। 


इस मौके पर टाटा स्मारक केंद्र मुंबई के निदेशक डॉ. आर. ए. बडवे ने कहा कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट कैंसर मरीजों के लिए एक उच्च दर्जे का इलाज है। ऐसे बेहद ही कम सेंटर है जो बोन मैरो ट्रांसप्लांट की सुविधा मरीजों को देते हैं अगर केवल कैंसर मरीजों के लिए इस इलाज की बात करें तो टाटा स्मारक केंद्र ही वह संस्था है जो केवल कैंसर मरीजों को बोन मैरो की सुविधा देता है। वाराणसी स्थित हमारे होमी भाभा कैंसर अस्पताल में इसकी पूरी सुविधा और एक डेडिकेटेड टीम है, जिसके चलते बेहद कम समय में इतने ट्रांसप्लांट संभव हो सके हैं।  


महामना पंडित मदन मोहन मालावीय कैंसर केंद्र एवं होमी भाभा कैंसर अस्पताल के निदेशक डॉ. सत्यजीत प्रधान ने कहा कि हमारा उद्देश्य अस्पताल आने वाले सभी मरीजों को बेहतर सुविधा और इलाज देना है। होमी भाभा कैंसर अस्पताल में बाल कैंसर और खून के कैंसर से परेशान मरीजों को इलाज देने के लिए सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं, जहां न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पड़ोसी राज्यों के भी मरीज इलाज के लिए आ रहे हैं।

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