Maharashtra: 26 साल पहले यात्री को 6 रुपये नहीं लौटाना क्लर्क को बहुत भारी पड़ा, चली गई नौकरी, बॉम्बे HC का राहत से इनकार

रेलवे टिकट बुकिंग क्लर्क, जिसे 26 साल पहले सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था, क्योंकि उन्होंने एक फर्जी रेल यात्री को 6 रुपये वापस नहीं किए थे। जबकि उनके काउंटर विंडो के ठीक पीछे एक अलमारी में 450 रुपये नकद पाए गए थे। इस मामले में अब बॉम्बे हाई कोर्ट ने क्लर्क को राहत देने से इनकार कर दिया था। और उनके निष्कासन को बरकरार रखा।

Maharashtra: 26 साल पहले यात्री को 6 रुपये नहीं लौटाना क्लर्क को बहुत भारी पड़ा, चली गई नौकरी, बॉम्बे HC का राहत से इनकार

रेलवे टिकट बुकिंग क्लर्क, जिसे 26 साल पहले सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था, क्योंकि उन्होंने एक फर्जी रेल यात्री को 6 रुपये वापस नहीं किए थे। जबकि उनके काउंटर विंडो के ठीक पीछे एक अलमारी में 450 रुपये नकद पाए गए थे। इस मामले में अब बॉम्बे हाई कोर्ट ने क्लर्क को राहत देने से इनकार कर दिया था। और उनके निष्कासन को बरकरार रखा।

जानकारी के मुताबिक, 30 अगस्त, 1997 को, जब रेलवे टिकटिंग क्लर्क राजेश वर्मा मुंबई के कुर्ला टर्मिनस जंक्शन पर ड्युटी पर थे, तब विजिलेंस की जांच में वह विफल रहे थे। विजिलेंस की टीम ने रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) के एक कांस्टेबल को फर्जी यात्री बनाकर बिहार के आरा के लिए ट्रेन टिकट खरीदने के लिए भेजा था। कांस्टेबल ने वर्मा को 500 रुपये का नोट दिया, जिसे 286 रुपये वापस करने थे, लेकिन उन्होंने उसे 280 रुपये ही वापस दिए।

इसके बाद सतर्कता टीम ने उसके काउंटर पर छापा मारा और काउंटर पर उसके कैशबॉक्स में कथित तौर पर 58 रुपये कम पाए और उसके काउंटर के पीछे एक स्टील की अलमारी में छुपाए गए 450 रुपये भी बरामद किए, जो कथित तौर पर "यात्रियों से अधिक किराया लेने" का पता लगाने से बचने के लिए छुपाए गए थे। वर्मा को रेलवे की नौकरी में बमुश्किल दो साल ही हुए थे।

विभागीय जांच के बाद जनवरी 2002 को उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। उन्होंने 2004 में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के आदेश के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने उनकी बर्खास्तगी को बरकरार रखा था। न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की पीठ ने मामले की सुनवाई की और वर्मा की दलीलों में कोई दम नहीं पाया, जिसमें यह भी शामिल था कि रेलवे ने उनके खिलाफ जांच में प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया था।

आदेश में कहा गया कि, हमारे सामने ऐसा कोई सबूत नहीं है, जो यह दर्शाए कि क्लर्क का छह रुपये लौटाने का इरादा था। यदि वास्तव में वह रूपये लौटाना चाहता था तो याचिकाकर्ता को फर्जी यात्री से अलग हटने और 6 रुपये की राशि की वापसी की प्रतीक्षा करने का अनुरोध करना चाहिए था। हालांकि, फर्जी यात्री और स्वतंत्र गवाह दोनों ने याचिकाकर्ता को ऐसा कहते हुए नहीं सुना। इसलिए, यह बताने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है कि याचिकाकर्ता का फर्जी यात्री को 6 रुपये की राशि वापस करने का कोई इरादा था।

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